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नज़्म
ऐ दिल पहले भी तन्हा थे, ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं
और उन ज़ख़्मों और दाग़ों से अब अपनी बातें होती हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
यही हैं मर्हम-ए-काफ़ूर दिल के ज़ख़्मों पर
उन्ही को रखना है महफ़ूज़ ता-दम-ए-आख़िर
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कौन समझेगा जहाँ में मिरे ज़ख़्मों का हिसाब
किस को ख़ुश आएगा इस दहर में रूहों का अज़ाब
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मुझ को मालूम है क्या बीत चुकी है तुझ पर
मेरे चेहरे के सुलगते हुए ज़ख़्मों को भी देख
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
तेरे आदा ने किया एक फ़िलिस्तीं बर्बाद
मेरे ज़ख़्मों ने किए कितने फ़िलिस्तीं आबाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
उसे कहना मोहब्बत नाम है रूहों के मिलने का
उसे कहना मोहब्बत नाम है ज़ख़्मों के सिलने का
इरुम ज़ेहरा
नज़्म
ख़्वाब ज़ख़्मी हैं उमंगों के कलेजे छलनी
मेरे दामन में हैं ज़ख़्मों के दहकते हुए फूल
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तुम्हारे ज़ख़्मों को भर दे ऐसी दवा नहीं है
मगर हम ऐसे ख़ुदा-परस्तों की दस्तरस में दु'आ-ए-कुन है
अरसलान अब्बास
नज़्म
रोओगी यूँ रात की ख़ामोशियों में कब तलक
बाइबल में कब तलक ढूँडोगी ज़ख़्मों का इलाज
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
जिस तरह सूख के ज़ख़्मों से गिरा करती है पपड़ी
उस की दीवारों से इस तरह से गिरता है प्लस्तर
गुलज़ार
नज़्म
मैं ने अपने ज़ख़्मों पर ख़ुद पट्टी बाँधी
मैं ने अपने टूटे दिल के हर टुकड़े को ठीक तरह से जोड़ लिया है
बालमोहन पांडेय
नज़्म
रह-ए-यक़ीं तिरी अफ़शान-ए-ख़ाक-ओ-ख़ूँ पे सलाम
मिरे चमन तिरे ज़ख़्मों के लाला-ज़ार की ख़ैर