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नज़्म
छोड़ दे लिल्लाह अब ये पीर-बाज़ी छोड़ दे
बुत-शिकन फ़ितरत है तेरी इन बुतों को तोड़ दे
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
जो ब-ज़ाहिर बुत-शिकन हैं और ब-बातिन बुत-तराश
ख़ूबी-ए-तक़दीर से वो मेहरबाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
तेरी फ़ितरत में है 'गोबिंद' का आसार मगर
'इब्न-मरियम' का मुक़ल्लिद तिरा किरदार मगर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
ऐ गुल-ए-रंगीं-क़बा ऐ ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार
तू है ख़ुद अपने जमाल-ए-हुस्न का आईना-दार