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नज़्म
मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हिजरत-ए-सुल्तान-ए-देहली का समाँ भी याद है
शेर-दिल 'टीपू' की ख़ूनीं दास्ताँ भी याद है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तेरे पैग़ाम-ए-हक़ीक़ी से हैं लबरेज़ अस्बाक़
तू है सुल्तान-ए-अदब नज़्म-ओ-ग़ज़ल दोनों में ताक़
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
अपने सुक्कान-ए-कुहन की ख़ाक का दिल-दादा है
कोह के सर पर मिसाल-ए-पासबाँ इस्तादा है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरापा सोज़ हो कर गर्म कर दूँ क़ल्ब-ए-हस्ती को
तपिश-अंदोज़ियों का दरस दूँ सुक्कान-ए-पस्ती को
क़ैसर अमरावतवी
नज़्म
उलूम-ए-ज़ाहिरी मुझ को बताते हैं
ब-ज़ाहिर गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर में एक दिन ऐसा भी आता है