इक्का
दस बजे हैं। लेडी हिम्मत क़दर ने अपनी मोटी सी नाज़ुक कलाई पर नज़र डालते हुए जमाही ली। नवाब हिम्मत क़दर ने अपनी ख़तरनाक मूंछों से दाँत चमका कर कहा। ग्यारह, साढे़ गया बजे तक तो हम ज़रूर फ़ो... होनच... बिग...
मोटर को एक झटका लगा और तेवरी पर बल डाल कर नवाब साहिब ने एक छोकरे के साथ मोड़ का पाए गढ़े से निकाला और अजीब लहजा में कहा। लाहौल वला क़ोৃ कच्ची सड़क...
गर्द-ओ-ग़ुबार का एक तूफान-ए-अज़ीम पाए के नीचे से उठा कि जो हमने अपने मोटर के पीछे छोड़ा। कितने मेल और होंगे ? लेडी हिम्मत क़दर ने मुस्कुराते हुए पूछा।
मैंने कुछ संजीदगी से जवाब दिया। अभी अट्ठाईस मेल और हैं। नवाब साहिब ने मोटर की रफ़्तार और तेज़ कर दी।
हुज़ूर आहिस्ता-आहिस्ता, हुज़ूर रास्ता ख़राब है। पीछे से मोदबाना तरीक़े से शोफ़र ने नवाब साहिब की ख़िदमत में अर्ज़ की। मगर नवाब साहिब को तेज़ मोटर चलाने की पुरानी आदत थी और उन्होंने कहा हष और शायद मोटर को और तेज़ कर दिया क्योंकि कच्ची सड़क से जी घबरा गया था।
(1)
मोटर पूरी रफ़्तार से हचकोले खाता चला रहा था। और हम लोग मोटर की उम्दा कमानियों और मुलाइम गद्दों पर बजाय हचकोलों से तकलीफ़ उठाने के मज़े से झूलते जा रहे थे।
सामने एक नालायक़ यक्का जा रहा था। दूर ही से नवाब साहिब ने हॉर्न देने शुरू कर दिए ताकि यक्का पेशतर ही सड़क के एक तरफ़ हो जाये और मोटर की रफ़्तार कम ना करनी पड़े। मगर यके की तेज़ी मुलाहिज़ा हो कि जब तक वो एक तरफ़ हो मोटर सर पर पहुंचा और मजबूरन रफ़्तार कम करना पड़ी। नवाब साहिब ने लाल पीले हो कर यके की तरफ़ मुँह कर के गोया हक़ारत से हाव कर दिया। वल्लाह आलम यके वाले ने सन भी लिया और नहीं।
चशम ज़ोन में वो नालायक़ यके मापने यक्का वाले के गर्द-ओ-ग़ुबार के तूफ़ान में ग़लतां-ओ-पेचां हो कर ना मालूम कितनी दूर रह गया।
लेडी हिम्मत क़दर ने यक्का को मुड़ कर देखने की नाकाम कोशिश की और फिर मुस्कुरा कर अपने क़ुदरती लहजे में कहा। आपने उस को देखा? इस को, यक्का को! बख़ुदा किया सवारी है। क़ियामत तक मंज़िल मक़सूर पर पहुंच ही जाएगा। क्या आप कभी... माफ़ कीजिएगा... कभी यके पर आप बैठे हैं?
जी हाँ। मैंने हंसकर कहा। बैठा हूँ और अक्सर बैठा हूँ।
नवाब हिम्मत क़दर ने मोटर की रफ़्तार और तेज़ करे हुए कहा। कीं! हैं अच्छा यके पर!! आप यके पर बैठे हैं! ख़ूब! भई माफ़ करना बड़ी ज़लील और वाहीयात सवारी है। हमारे आली ख़ानदान का कोई फ़र्द कभी यके पर नहीं बैठा।
फिर कुछ लापरवाही से नवाब साहिब बोले। वल्लाह आलम इस पर कैसे सफ़र करते हैं। बड़ी वाहीयात सवारी है। नवाब साहिब ने कुछ ग़रूर-ओ-तमकेनत के लहजा में जुमला ख़त्म किया।
फिर लुतफ़ ये! लेडी हिम्मत बोलीं। लुतफ़ ये कि तीन तीन आदमी एक साथ बैठते हैं। मुझसे पूछा। क्यों साहिब आप तन्हा बैठे हैं या कई आदमीयों के साथ?
मैं तन्हा भी बैठा हूँ और हम कल चार आदमी भी बैठे हैं और पांचवां यक्का वाला।
पाँच आदमी! लेडी हिम्मत क़दर चीख़ कर बोलीं। ईं पाँच आदमी! चर... पाँच आदमी... आओ!
मोटर को एक ज़बरदस्त झटका लगा। पुश्त पर से शोफ़र लुढ़क कर लेडी हिम्मत क़दर की गुरू में आ गिरा। नवाब साहिब ने असटीरनग व्हेल छोड़कर करंट का तमाशा किया। यानी बैठे-बैठे उल्टी कलाबाज़ी ऐसी खाई कि गद्य पर मेरे ऊपर गिरे और साथ ही इस गड़बड़ में एक बम का सा गोला फटा। लेडी हिम्मत क़दर की फ़लक शि्गाफ़ चीख़ और मोटर के टावर की बमबारी और नवाब साहिब का मेरे ऊपर गिरना और फिर तमाम बातों का नतीजा यानी बदहवासी। मोटर के अंदर ही अंदर क़ियामत बपा हो गई। होश बजा हुए तो मालूम हुआ कि ख़ैरीयत गुज़री। महिज़ फाँदा फूंदी रही। मैंने अपने ऊपर नवाब साहिब के गिरने की ख़ुद उल्टी उनसे माज़रत चाही। शरीफ़ आदमी हैं। उन्होंने कुछ ख़्याल नहीं किया बल्कि मुझसे पूछा कि लगी तो नहीं। मेरे सेना में नवाब साहिब का सर गोले की तरह आ गिर लगा था। मगर मैंने कहा बिलकुल नहीं लगी। ये तै कर लिया गया कि सबसे ज़्यादा लेडी हिम्मत क़दर के लगी है और सबसे कम शोफ़र के इसी मुनासबत से दरअसल हमने एक दूसरे की मिज़ाजपुर्सी भी की थी।
बहुत जल्द दूसरा पहिया चढ़ा लिया गया। लेकिन अब जो चलाते हैं तो मोटर नहीं चलता। बहुत जल्द वजह मालूम हो गई। पैट्रोल की टंकी में एक सुराख़ था जिसको काग लगा कर बंद किया गया था वो धचके से अपनी जगह से हट गया। वल्लाह आलम कुछ देर पहले या अब, कुछ भी हो, पैट्रोल बह चुका था। अब जो ग़ौर से देखते हैं तो ज़मीन तर थी। अब किया हुआ स्टेशन यहां से अट्ठाईस मेल होगा और फिर कच्ची सड़क और जाना इस क़दर ज़रूरी। सड़क बिलकुल सुनसान थी।
ऐन उस घबराहट और यास के आलम में क्या देखते हैं कि ऐन सड़क की सीध में गोया उफ़ुक़ सड़क पर नय्यर उम्मीद तलूअ हुआ। यानी इस टूटे फूटे यके की छतरी चमकी। फिर उस के बाद यके का हयूला नज़र आया। जिसने बरक़रफ़तारी के साथ यक्का मुजस्सम की सूरत इख़तियार कर ली।
हम एक दूसरे को देखते रहे और कभी यके को हती कि क़रीब पहुंचा, बराबर आया, कुछ हल्का पड़ा और क़रीब क़रीब रुक सा गया। बल्कि यके वाले के गुर आलूद चेहरे पर कुछ ख़ुशी की झलक के साथ लबों को हरकत भी हुई। मगर यहां सब ख़ामोश। लेडी हिम्मत क़दर ने ऐन इस मौक़ा पर एक अजीब नज़र डाल कर आँखों ही आँखों में ख़जालत से शायद मुझसे कुछ कहा। मैंने मअन लेडी हिम्मत क़दर की तरफ़ देखा जिन्हों ने कनखियों से यके के पाए की तरफ़ देखकर अपनी नाज़ुक सी छतरी से ज़मीन कुरेदना शुरू की। यक्का आगे निकल चुका था। दरअसल मुसीबत तो ये थी कि सिवाए मेरे यहां किसी को यके वाले को पुकारना तक नहीं आता। मैं अलबत्ता माहिर था। मजबूरी बुरी बला है। मैंने नवाब साहिब और लेडी हिम्मत क़दर की ख़िफ़्फ़त देखकर दिल ही दिल में कहा।
मेहरबान आपकी ख़िफ़्फ़त मरे सर आँखों पर
और फिर हलक़ फाड़ की आवाज़ दी। अबे ओ यके वाले।
(2)
अब सवाल ये था कि लेडी हिम्मत क़दर इस पर कैसे बिठाई जाएं। नवाब साहिब ने मुझसे कहा। आप ही कोई तरकीब निकालिए। क्योंकि सिवाए मेरे और कौन यहां यके का माहिर था। लेडी हिम्मत क़दर का एक तरफ़ से मैंने बाज़ू पकड़ा और दूसरी तरफ़ से नवाब साहिब ने। बेगम साहिबा ने एक पैर धरे पर रखा और दूसरा पहिया के हाल पर और इस के बाद शायद उड़ने की कोशिश की हाल पर से पैर सरक गया और वो पर कटी मीणा की तरह मेरी तरफ़ फड़ फड़ाएं, किया करता मजबूरन मैंने उनको लिहाज़ के मारे छोड़ दिया वर्ना वो मेरी गोद में होतीं। उन्होंने हाथ पैर भी आज़ाद पा कर चला दिए और उनके बूट की ऊंची और नोकीली एड़ी काबिल-ए-एहतिराम शौहर की नाक पर लगी। नतीजा ये कि नवाब साहिब पहिया के पास दराज़। मैंने कहा या अली! नवाब साहिब मूँछें झाड़ते हुए मुझसे शिकायत करते हुए उठे और बेगम साहिबा को सँभाला। अब ये तै पाया कि यके को मोटर के पास खड़ा किया जाये। बराबर नवाब साहिब बैठे और आगे में बैठा। यके वाले ने टख टख की सदा बुलंद की। चूँ चर्ग़ चूँ। और यक्का चल दिया।
नवाब साहिब और लेडी साहिबा को मालूम हुआ कि ख़ुद अपने जूतों से अपने कपड़े मैले हो रहे हैं। फ़ौरन मुआमला मेरे सामने पेश की कर के इस का ईलाज मुझसे पूछा। यक्का वाले ने फ़ौरन कहा। आप दोनों अपने अपने जूते उतार कर हाथ में ले लीजिए। ताकि में आगे वाले घास के डिब्बा में रख दूं। और घास का डिब्बा खोला तो इस में दो तीन रस्सियाँ, एक चिलिम, एक हथौड़ी, चंद कीलें वग़ैरा थीं। नवाब साहिब अब तक ख़ामोश थे, यके वाले पर सख़्त ख़फ़ा हुए। मैंने नवाब साहिब को समझा दिया कि कपड़े तो जूते से मेले होना लाज़िमी ही हैं। फिर उस यके की ख़ूबीयों का तज़किरा किया कि जिसमें पैर रखने का पाएदान भी होता है। वो होता तो ग़ालिबन लेडी हिम्मत क़दर को चढ़ने में ये दिक्कतें पेश ना आतीं।
यक्का वाले ने अपनी पोज़ीशन इस तरह साफ़ की कि साहिब पाएदान कमानीदार यके में होता है और मैं कच्ची सड़क पर चलाता हूँ, लिहाज़ा कमानीदार यके नहीं रखता, वर्ना दो दिन में कमानीयाँ चूर चूर हो जाएं। यक्का वाला कुछ फ़लसफ़ियाना रंग में आकर बोला। हुज़ूर यहां तो ब खड़िया यक्का चलता है। कच्ची सड़क का ये बादशाह है। ना लौटे और ना ये टूटे और मुसाफ़िर भी आराम से चीन की हंसी बजाता है।
चुप नवाब साहबे भुना कर यके वाले से कहा।
(3)
थोड़ी देर बाद नवाब साहिब ने पैंतरे बदलना शुरू किए। इन का घटना मेरी पीठ में बुरी तरह गड़ रहा था। लेडी हिम्मत क़दर एक हाथ से अपनी नाज़ुक छतरी लगाए थीं और दूसरे हाथ से यके का डंडा पकड़े थीं। उनके दोनों हाथ कभी के दुख चुके थे। हर झटके पर वो इस तरह चीख़ती थीं कि मालूम होता था कि गर गईं। नवाब साहिब के मूज़ी घुटने के गढ़ने की वजह से मैं धीरे धीरे आगे सरकता जाता था। मगर जितना मैं हटता उतना शायद नवाब साहिब का घटना और बढ़ जाता था। मेरी अक़ल काम ना करती थी कि क्या करूँ जो इस घुटने से पनाह मिले।
इतने में एक झटका लगा और नवाब साहिब की नाक यक्का के आगे वाले डंडे में लगी। ऐन उस जगह जहां में इस को हाथ से पकड़े था। मेरी छंगुली कुचल गई। लगी तो नहीं। नवाब साहिब ने मुझसे पूछा। आपके तो नहीं लगी। मैंने उनकी लाल नाक देखते हुए कहा। दोनों को ज़ोर से लगी थी। मेरी छंगुली में, उनकी नाक में मगर दोनों झूट बोले और जवाब वाहिद था। जी नहीं, बिलकुल नहीं। वाक़ई झटका ऐसा लगा कि अगर कहीं मेरी उंगली उस जगह पर ना होती तो नवाब साहिब की नाक पची हो जगाती।
ज़रा इधर हटिए। लेडी हिम्मत क़दर ने नवाब साहिब से रूखे लहजे में कहा। नवाब साहिब ने अपनी प्यारी बेगम के कहने से करवट सी बदल कर कोई आध इंच घटना और मेरी पीठ में घुसेड़ दिया।
मैंने घुटने की नोक तो! हाँ साहिब, नोक को! जो बुरी तरह तकलीफ़ दे रही थी। ज़रा सरक कर दूसरे हिस्सा जिस्म पर लिया।
तेज़ नहीं चलाता। यके वाले से नवाब साहिब ने हलक़ फाड़ कर कहा। उसने सूत की रस्सी की लगाम को झटका देकर घोड़े को टटख़ारा दिया और लगाम के ज़ाइद हिस्सा को घुमा कर दो तरफ़ा घोड़े को झाड़ दिया और फिर दुबारा जो घुमा कर सड़ागा दिया तो मेरी ऐनक लगाम के साथ उड़ चली और क़बल उस के कि मैं अपनी नाक पर हाथ ले जाऊं कि कहीं ऐनक मा नाक के तो नहीं चली गई, ऐनक मा रस्सी के लेडी हिम्मत क़दर के बालों में जा उलझी। लेडी हिम्मत क़दर ने चीख़ निकाली। रस्सी मेरी नाक के नीचे से होती हुई गई थी। गोया एक दम से मेरे मुँह में लगाम दे दी गई। क़ुदरती अमर कि मेरा हाथ साथ साथ इस पर पहुंचा और लेडी साहिबा के मेरी ऐनक ने बाल खींच लिए! वो बोलीं। चीख़... चर... चीं।
ऐनक बाएहतियात तमाम लेडी मौसूफ़ा के बालों को सुलझा कर निकाली गई। यके वाला मारे डर के काँप रहा था। ख़ूब डाँटा गया बल्कि पिटते पिटते बच्चा। फिर सँभल कर बैठे और इस सिलसिला में नवाब साहिब का घटना एक-आध इंच और मेरी कमर में दर आया, मजबूरन में कुछ और आगे सरका। मगर वहां जगह कहाँ? मैं पेशतर ही कगर पर आ गया था।
लेडी हिम्मत क़दर पर तीन तरह का साया था। एक तो ख़ुद नवाब साहिब का, दूसरे यके की छतरी का और तीसरे ख़ुद उनकी नाज़ुक छतरी का। मगर धूप तेज़ थी। यक्का की छतरी ज़ाहिर है कि अगर कुछ पनाह धूप से देती है तो वो भी ठीक बारह बजे और बारह बजने में अभी देर थी।
बावजूद हर तरह के साया के लेडी हिम्मत क़दर गर्मी से हैरान थीं। सड़क ज़रा बेहतर आ गई थी। और यक्का अब रोनी के साथ चला जा रहा था और ज़ाहिर और कोई तकलीफ़ ना थी। अब ऐसे मौक़ा पर गर्मी की तकलीफ़ लामुहाला महसूस हुई और लेडी हिम्मत क़दर ने कुछ बेचैन हो कर कहा। ख़ुदा की पनाह मरी जा रही हूँ गर्मी से...
जुमला पूरा ना हुआ था कि यक्का वाले ने अपनी सुरीली आवाज़ में मिसरा खिंचा। हम मरे जाते हैं। तुम कहते हो हाल अच्छा है...
अबे नालायक़। ये कह कर एक तरफ़ से नवाब साहिब गरजे और दूसरी तरफ़ एक कहनी उस की बग़ल में मार कर में बरस पड़ा। बेहूदा, नालायक़, बदतमीज़। फिर नवाब साहिब इस तरह गिड़गिड़ाए और बड़बड़ाए जैसे कोई बड़ा ख़ाली बर्तन पानी में ग़र्क़ होता है। और इस बुरी तरह डिपटा और साथ साथ इस डपट के कोई आध इंच और नवाब साहिब ने अपना बारीक घटना (मोटे ताज़े थे) मेरी कमर में भोंक दिया।
दरअसल उस वक़्त यके वाले की ख़ता ना थी। अगर लंबे रास्ते का एक सुस्त यके पर आपको सफ़र करने का मौक़ा मिला है तो अक्सर ऐसा होता है कि यक्का घोड़े की ताक़त के मुताबिक़ एक पुरसुकून और मुस्तक़िल रफ़्तार इख़तियार कर लेता है, झटके मुनज़्ज़म हो जाते हैं। झकोलों का एक साईकलक आर्डर (तर्जुमा ग़ालिबन निज़ाम तसलसुल) क़ायम हो जाता है। पहिया की चर्ख़ चूँ एक टाइमिंग (तर्जुमा। ग़ालिबन तय्युन-ए-वक़त) की पाबंद हो जाती है। घोड़े के क़दम नपे तुले पड़ते हैं। मुसाफ़िरों के सर मुक़र्ररा हदूद में एक तंज़ीम के मातहत हिलते हैं। आपस में सर टकराने का इमकान जाता रहता है। ग़रज़ जब हर चीज़ मुनज़्ज़म हो कर यके को मुजस्सम पोइट्री आप मोशन (तर्जुमा ग़ालिबन नज़म अलहरकात) बना देती है तो मालूम होता है कि यक्का चल नहीं रहा है बल्कि बह रहा है और फिर यके वाले की तबीयत एक अजीब पर-कैफ़ हो जाती है। ख़ुसूसन जब कि किराया माक़ूल मिला हो। वो कुछ सीने के बल झुक कर आँखें नीम-बाज़ किए हुए ना मालूम कहाँ पहुंचता है। इस को ये भी ख़्याल नहीं रहता कि यके पर कौन है कौन नहीं। और नतीजा ये कि वो अलाप उठता है। लिहाज़ा अगर ग़ौर से देखा जाये तो यहां यके वाले की कोई ख़ता ना थी।
मैंने इस फ़लसफ़े को नवाब साहिब और उनकी बेगम साहिबा को समझाने की कोशिश की। बेगम साहिबा आधे से ज़्यादा इस फ़लसफ़े को समझ चुकी थीं कि उन्होंने एक दम से चेहरा वहशत-ज़दा बना कर रेल की सीसीटी देने की कोशिश की और छतरी दूर फेंकी। अरे रोक रोक। एक तरफ़ से नवाब साहिब चीख़े और दूसरी तरफ़ से मैं चलाया। कम्बख़्त रोक
बेगम साहिबा की रेशमी साड़ी पहिया में उलझ कर रह गई और अगर यक्का ना रुकता तो चूँकि रेशम मज़बूत होता है, ज़रूर नीचे आतीं। यहां से महारानी दरौपदी का सा क़िस्सा शुरू होता है। साड़ी का ज़रीं काम सब ख़राब हो गया था। नवाब साहिब बहादुर यक्काबान पर बेहद बरफ़रोख़्ता थे ना इस वजह से कि साड़ी क़ीमती थी, बल्कि इस वजह से कि पहिया ने बेगम साहिब की लापरवाही से फ़ायदा नाजायज़ उठाते हुए गुस्ताख़ी की थी और क़सूर यक्का का था और यक्का ख़ुद यक्का वाले का।
मैं चूँकि यके पर बैठने का माहिर था, लिहाज़ा मेरी तरफ़ नवाब साहिब ने सवालिया सूरत बना कर देखा क्योंकि मैंने यके वाले को एक लफ़्ज़ ना कहा था। चुनांचे मैंने तसदीक़ की बे-शक ऐसा भी होता है और इस में यके वाले की कोई ख़ता ना थी। बशर्तिके वो यके को रोकने में ख़्वाह-मख़ाह देर ना कर ले। लेडी हिम्मत क़दर ने मुझसे पूछा। क्यों साहिब, क्या आपकी बीवी के साथ भी कभी ऐसा हुआ है ? मैंने जवाब दिया। मेरी तो ख़ुदा के फ़ज़ल से बची ही हैं मगर ख़ुद मेरे साथ कई मर्तबा ऐसा हुआ है और उचकन का दामन अक्सर ख़राब हो गया है।
(4)
ये कील तो मारे डालती है। नवाब साहिब ने कुछ बेकल हो कर पैंतरा बदला और कील की जगह को टटोल कर मेरी कमर में आध इंच और अपना घटना पैवस्त कर दिया। नवाब साहिब भारी भरकम आदमी थे। आप कहेंगे कि उनका घटना और बारीक तो अर्ज़ है कि एक मोटी चीज़ भी जिस वक़्त मुस्तक़िल तौर पर जिस्म में पैवस्त होने की कोशिश करती है और वो भी फिर यके पर तो इस की चुभन किसी तरह नोकदार चीज़ की चुभन से कम तकलीफ़-दह नहीं होती। मैं ख़ुश था कि नवाब साहिब की रान में कील चुभ रही है और मेरा बदला ले रही है। हालाँकि यके पर गद्दी थी और इस पर दोहरी चादर मगर यक्का नवाब साहिब को बे-कल किए देती थी।
थोड़ी देर बाद नवाब साहिब इस कील से परेशान हो कर अकड़ूं की किस्म की करवट से बैठ गए। उनका सर अजीब तरह यके के झकोलों के साथ गर्दिश कर रहा था यानी इस तरह कि अगर उनकी नाक पर पेंसिल बांध दी जाती और इस के सामने काग़ज़ होता तो एक गोल हलक़ा बन जाता। लेडी हिम्मत क़दर को ऐसे झटके लग रहे थे कि अगर उनकी नाक पर पेंसिल होती तो आधा हलक़ा तो ठीक बनता मगर फिर पेंसिल काग़ज़ में चुभ जाती। मेरी नाक शायद लहरिया बनाती और यके वाला चूँकि झुका हुआ था लिहाज़ा उस की नाक सतरें खींच रही थी। ग़रज़ इस तरह हम सब उक़्लीदस की शक्लें हल करते चले जा रहे थे।
माहीरीन-ए-फ़लकीयात का एक अजीब नज़रिया है और वो ये कि निज़ाम-ए-शमसी के तमाम अजसाम मुक़र्ररा हदूद के अंदर अपने अपने क़वाइद के मुताबिक़ इस्तिलाह में कशिश रखते हैं इस नज़रिया की रो से क़ियामत जब आएगी जब इस कशिश में फ़र्क़ पड़ेगा। नतीजा ये निकलेगा कि तमाम अजसाम बेक़ाबू हो कर आपस में लड़ जाऐंगे। हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ कि इस नज़रिया की तफ़सीर यक्का पे पेश आना थी। एक मामूली से गढ़े पर निहायत ही मामूली सा झटका लगा। मगर ये झटका था जिसने गोया निज़ाम-ए-शमसी को दरहम-बरहम कर दिया। आपस में हम सब के सर लड़ गए और फिर अलैहदा हो कर डंडों में जा लगे और कुछ तो इस वक़्ती अबतरी से हुआ नहीं मगर इस सिलसिला में नवाब साहिब का घटना मेरी कमर में फिर दर आया, में बिलकुल कगर पर था और वो अब क़िस्सा माज़ी की बात थी जब उनका घटना आध आध इंच सरकता था अब तो जगह ही ना थी और मैं तोते की तरह अड्डे पर बैठा हुआ था।
यक्का का दबाओ वैसे ही था, यानी आगे को माइल था। क़िस्मत की ख़ूबी नवाब साहिब ने इस नामाक़ूल सी वजह से एक मामूली से झटके से बेकल हो कर एक दम से उछल कर बोझ आगे डाल दिया। यके का साज़ किया था। बस रस्सियों की जकड़ बंदी थी। वल्लाह आलम झटके से मगर मैं कहता हूँ कि शायद क़सदन लेडी हिम्मत क़दर ने एक चीख़ के साथ अपनी छोटी सी छतरी मेरे सर पर रखकर अपनी तरफ़ ज़ोर से घसीटी। उधर में पर कटे तोते की तरह नवाब साहिब के घुटने की बिद्दतों की वजह से गोया अड्डे पर बैठा ही था। वहां सिवाए कगर के रह ही किया गया था। हम जो एक दम से ज़मीन पर आ लगे तो मैं आगे को गिरा छतरी मुँह पर छड़ी थी, दिखाई क्या देता ख़ाक और फिर दिखाई भी देता तो बेकार। झटके से छतरी तो बाद में अलग हो गई। मगर मैं अजीब तरह गिरा और दूर तक अपनी नाक ज़मीन से सिर्फ बालिशत भर ऊंची किए दौड़ा ही चला गया और फिर हर क़दम पर ये उम्मीद थी कि बदन क़ाबू में आ जाएगा और खड़ा हो जाऊँगा। मगर हज़रत ये उम्मीद मौहूम निकली और इस तरह मुनक़ते हुई कि दस बारह क़दम की मुसाफ़त इसी तरह नाक ज़मीन से कोई बालिशत भर ऊंची किए तै करने के बाद में अपनी नाक से सड़क की ज़मीन पर हल चला देने पर मजबूर हो ही गया।
उठा और अपनी नाक टटोली। सारा मुँह गर्द से सफ़ैद हो गया था। आँखों ने जब देखा कि नाक इरादा क़तई है तो वो बंद हो गई थीं। वर्ना धूल में फूट ही जातीं। मगर फिर भी आँखों ने बहुत काम किया था और आख़िर वक़्त तक खुली रहने की वजह से उनकी मिट्टी घुस गई थी। हाथों ने बड़ी ख़िदमत की और छल गए। वर्ना शायद मेरी नाक घुस कर ग़ुबार-ए-राह हो जाती। क्योंकि बला मुबालग़ा फ़ुट भर के क़रीब नाक ने ज़मीन पर एक गहिरी सी लकीर खींची। कुछ भी हो ये सब चशमज़दन में चुका था। मैंने उठकर देखा तो बेगम साहिबा दोनों हाथों से डंडे पकड़े मुसलसल चीख़ें मार रही थीं। हालाँकि वो ख़तरे से बाहर थीं। और बंदरिया की तरह डंडे पर चुपकी हुई थीं। नवाब साहिब यक्का के बम पर कुछ इस तरह आकर रखे थे कि शुबा होता था कि वो बच्चों वाल गेम घोड़ा घोड़ा बम के डंडे से खेल रहे थे। यके वाला ग़रीब अलबत्ता पहिया की सीध में चित्त गिरा था। घोड़ा इस वक़्ती सुबकदोशी को ग़नीमत तसव्वुर कर के एक अंदाज़ बे-ख़ुदी के साथ सड़क के किनारे कुछ टिफिन उड़ा रहा था।
बहुत जल्द एक दूसरे की ख़ैरीयत और मिज़ाजपुर्सी से फ़राग़त पाई, यके वाले ने यके के साज़ की गांठा गोनठी और बाँधा बोनधी की मगर कुछ ठीक ना बंधा तो नवाब साहिब से उसने कहा।
आपके पास रस्सी का कोई टुकड़ा तो नहीं होगा?
नवाब साहिब ने इस का जवाब दिया। उल्लू के पट्ठे... उम... बहम... (भुना रहे थे) मैंने डाँट कर कहा। अबे तो बिलकुल ही गधा है।
यक्का वाला गुनगुना कर बोला, मियां मैंने कहा शायद कोई टुकड़ा वकड़ा निकल आए, फिर अब बताईए क्या हो, बग़ैर रस्सी के काम नहीं चलेगा।
मेरा सोती रूमाल और बेगम साहिबा और नवाब साहिब का रेशमी रूमाल इन तीनों को मिला कर मज़बूती से साज़ की बंदिश को यके वाले ने सँभाला। झटके देकर ख़ूब अच्छी तरह आज़माने के बाद उसने कहा। अब बैठ जाईए।नवाब साहिब चूँकि सबसे ज़्यादा भारी थे, लिहाज़ा यके वाले ने कहा कि ज़रा पीछे को दबे रहीं। हम सब अच्छी तरह बैठ गए। नवाब साहिब पीछे को दब कर बैठे, ऐसे कि जैसे कि गाव तकिया लगाए हूँ और जो कुछ था, सो था, मैं ख़ुश था कि नवाब साहिब के घुटने से मेरी जान छोटी।
मगर थोड़ी ही देर बाद नवाब साहिब की पीठ में यके की आराइश चुभने लगी। क्योंकि ये यक्का ज़रूरत से ज़्यादा मोटे मोटे नीले पीले मोतीयों से आरास्ता था जो मज़बूत तार में पिरो कर डंडों में जकड़े हुए थे। लिहाज़ा नवाब साहिब कुछ आगे को माइल हुए और उन्होंने घटना उड़ाने की तमहीद उठाई। अब मैं तंग था लिहाज़ा मैंने नवाब साहिब से कहा कि ज़रा पीछे ही रहेए। वर्ना अंदेशा है कि यक्का दबाओ हो जाएगा। लेडी हिम्मत क़दर अब दबाओ के नाम से काँपती थी। उन्होंने भी नवाब साहिब से कहा कि पीछे ही रहेए। अब यके का तवाज़ुन बहुत अच्छी तरह क़ायम था। ज़रा भी दबाओ होता तो मैं नवाब साहिब की तवज्जा रुमालों की कमज़ोर बंदिश की तरफ़ दिलाता और नवाब साहिब फिर ठीक तरह बैठ जाते, वर्ना बेगम साहिबा ग़ल मचातीं।
कोई काबिल-ए-ज़िक्र बात ना थी कि एक मामूली से झटके पर लेडी हिम्मत क़दर चीख़ें और साथ ही सड़क पर से बासी गोबर का एक टुकड़ा पहिया के साथ उड़ कर उनकी आँख में लगा। वो चीख़ें तो दरअसल इस वजह से थीं कि हाथ में डंडे की फाँस लग गई थी कि यक ना शुद दो शुद और उनकी आँख में गोबर पड़ गया। यक्का रोका गया। फाँस निकाली गई और आँख साफ़ की गई। लेडी हिम्मत क़दर के हाथ डंडा पकड़े पकड़े सुर्ख़ हो गए थे और वो कह रही थीं कि मेरा शाना उखड़ा जा रहा है। मगर क्या करतीं लाचार-ओ-मजबूर थीं, कोई चारा ही ना था।
(5)
इसी हालत में हम चले जा रहे थे। सड़क रफ़्ता-रफ़्ता ख़राब आती जा रही थी और फिर थोड़ी देर बाद ऐसी आई कि होशयारी से बैठना पड़ा। लेडी हिम्मत क़दर दबाओ यक्का का ख़्याल कर कर के काँप उठती थीं और नवाब साहिब को ताकीद पर ताकीद थी कि पीछे हटे रहो। यके वाला भी ख़ुश था कि घोड़ा हल्का चल रहा है। मगर ये शायद लेडी हिम्मत क़दर को मालूम ना था कि यके पर बैठना दो हालतों से ख़ाली नहीं। या तो दबाओ जब आगे को बोझ होगा और फिर उलार जब पीछे को बोझ होगा। मैं चूँकि आगे को बैठा था और दबाओ यके का लुतफ़ उठा चुका था कि यक्काबान से लेकर नवाब साहिब तक हर किस-ओ-ना किस की ये कोशिश थी कि यक्का उलार रहेरुमालों की बंदिश पर उलार यके का ज़ोर बेतरह पड़ रहा था और चूँकि आगे बैठने वाले को उलार यक्का में ख़तरा होता है लिहाज़ा मैं चुप था। लेडी हिम्मत क़दर जानती ही ना थीं कि उलार क्या चीज़ होती है। नवाब साहिब बेगम साहिबा की ख़ुशनुदी में मुनहमिक थे और यके वाले के लिए उलार और दबाओ रोज़ाना का मद-ओ-जज़र ठहरा। नतीजा उस का ये हुआ कि एक ग़ैरमामूली गढ़े पर झटका लगा। रुमालों ने तड़ अक्खा भरा। लेडी हिम्मत क़दर जो उसूलन चीख़ें हक़बजानिब थीं। क्योंकि यके के दोनों बम ऐन्टी एयर क्रा़फ्ट गुण (हवाई जहाज़ को गिराने की तोप) की नालों की तरह उठ गए। यक्का अगर आदमी होता तो क़तई चित्त गिरता। अक़लमंद यक्काबान ने यके की पुश्त पर नीचे एक तरफ़ यके का दाहिना बम क़सदन आध गज़ बनवाया था। जिसको ज़ाहिरन बेकार तौर पर निकला हुआ छोड़ दिया था। ये दरअसल अगर सच्च पूछिए तो थियूरी आफ़ बैलंस यानी नज़रिया तवाज़ुन की तफ़सीर था। जिसको ईस्तलाहन पोरप की तरफ़ अलरीठा कहते हैं। या बालफ़ाज़ दीगर ऐन्टी उलार अपरीटस (आला माए उलार) वाक़ई अगर ये कहीं ना होता यक्का मापने अस्बाब जहालत यानी हम लोगों के सर के बल (यानी छतरी के बल) चित्त गिरता।
मगर फिर भी बावजूद यके आला नुमा माए उलार ने यक्का एक झटके के साथ रोक लिया। लेकिन दोनों बमीं हवा में मुअल्लक़ हो गईं उस का नतीजा ये हुआ कि यके वाला लुढ़क कर लेडी हिम्मत क़दर की गोद में गिरा और अपनी इस इज़्ज़त-अफ़ज़ाई से इस क़दर घबराया कि मेरी गर्दन पर से होता हुआ निकल कर पाए के पास गिरा। मैं लंबा लंबा यक्का में लेटने पर मजबूर हुआ। और यके बाण के बैठने की जगह जो एक ख़ाना होता है इस का ढकना खुल जाने की वजह से तंबाकू मिली हुई रेत फांकने के इलावा मेरे मुँह पर हथौड़ी और चिलिम और दूसरी मकरूहात गिरें मा लगाम के जो यके बाण छोड़ गया था।
नवाब साहिब ने अजीब हरकत की तो वो गिड़गिड़ा कर फाँदे और छिपकली की तरह पिट से पहिया के बराबर धूल में गिरे और इस बरजस्तगी के साथ उठे कि बयान से बाहर है।
यके वाले के पास काफ़ी उज़्र मौजूद था। मसलन साहिब ये तो होता ही रहता है। (कोई ग़ैरमामूली बात नहीं) साज़ पुराना हो गया है... कहीं रुमालों से काम चलता है... नया साज़ अब के मेले की मज़दूरी से खरीदोंगा... घोड़ा छः सैर दाना खाता है, दाम ही बचते नहीं। वग़ैरा वग़ैरा।
यक्का में भी जगह जगह खज़ाने होते हैं, ना मालूम किन किन मुक़ामात को यक्का वाले ने कुरेदा और कहाँ से रस्सी के मुतअद्दिद टुकड़े निकाल कर साज़ को फिर गूँधा और कसा और ख़ुदा ख़ुदा कर के हम फिर चले। लेडी हिम्मत क़दर अब सहमी हुई थीं। उनकी समझ में ना आता था कि अब किस तरफ़ ज़ोर दें। आगे को झुकें तो दबाओ का डर और पीछे रहें तो उलार का ख़तरा। अजीब लहजा में उन्होंने कहा। यक्का बड़ी ख़तरनाक सवारी है। कभी कोई मर तो नहीं जाता?
यक्का वाला बोल उठा। साहिब जिसकी आती है वो इस बहाने भी जाता है।
नवाब साहिब ने ज़ोर से डपट कर कहा। चप बे... टराप... (बड़बड़ाने लगे)
(6)
पक्की सड़क! पक्की सड़क! ये नारा हम लोगों ने पक्की सड़क को दूर ही से देखकर इस तरह बुलंद किया जिस तरह क्रिस्टोफ़र कोलंबस के साथीयों ने ज़मीन को देखकर ज़मीन! ज़मीन! का ग़लग़ला बुलंद किया था। थोड़ी देर में हमज़ोर से पक्की सड़क पर खड़ खड़ाते जा रहे थे। अब हमें मालूम हुआ कि यके पर हम गोया सर के बल बैठे हैं। बे कमानी के यके की खड़खड़ाहट भी अजीब चीज़ है। कच्ची सड़क की मिट्टी और ग़ुबार-ए-चश्म ज़दन में कपड़ों पर से झड़ गई। नवाब साहिब की कील बजाय उनके एक जगह गढ़ती सारी रान के तूल-ओ-अर्ज़ में चुभ रही थी। यके वाले को मौक़ा मिला। आओ बेटा कर के उसने घोड़े की रस्सी की लगाम अच्छी तरह झाड़ दिया और घोड़ा भी कच्ची सड़क की सऊबत से ख़लासी पा कर अपने जोहर दिखाने लगा, वो तेज़ चला और पिटा। ख़ूब तेज़ चला और ख़ूब पिटा। यके वाले को इस से बेहस नहीं कि तेज़ चल रहा है, घोड़े को ना मारना चाहिए। वहां तो उसूल है कि मारे जाओ घोड़ा भी कहता होगा कि इलाही ये क्या ग़ज़ब है, जितना जितना तेज़ दौड़ता हूँ, मारा जाता हूँ। क़दम हल्का करता हूँ तो मारा जाता हूँ। आख़िर को जानवर फिर जानवर है, लेकर बे-तहाशा दौड़ा और इसी मुनासबत से मार खाई। हाएं हाएं में करता ही रहा और लेडी हिम्मत क़दर की चीख़ें अलग कि इतने में ख़ैर से दाहने पहिया की ऐन उस बरक़रफ़तारी के आलम में कील निकल गई और पहीए निकल कर ये जा वो जा।
ख़ुदा की पनाह, मोटर का हादिसा तो कोई चीज़ नहीं, घोड़ा भागते में करवट के बल गिरा और यके वाला आधा उस के नीचे। मैं उड़ कर दूर गिरा नवाब साहिब यके के पीछे गिरे और बेगम साहिबा ख़ुद यक्का के दाहिनी तरफ़, यके वाला चोट की वजह से और लेडी हिम्मत क़दर सदमा की वजह से बेहोश हो गईं। और नवाब साहिब का कूल्हा उतर गयाऔर मेरी दो पिसलियाँ टूट गईं। सब अपनी अपनी जगह पड़े थे। घोड़ा बैठा हुआ था। मैंने आँखें झपका कर देखा। नवाब साहिब लंगड़ाते हुए उठे और अपनी बेगम साहिबा को सँभाला। एक अजीब पसपाईत का आलम था।
ख़ुदा रहीम-ओ-करीम है उसने दस पंद्रह मिनट बाद ही एक मोटर भेज दिया। एक अंग्रेज़ इस तरफ़ जा रहा था, जिधर से हम आ रहे थे। उसने सबको बैन बटोर कर सीधा हस्पताल पहुंचाया। यके वाले का यक्का और घोड़ा वहीं रह गया था। बाद में वो खो गया। नवाब साहिब ने इस को अपने मोटर पर जब से रख लिया है। कभी कभी मिलता है तो इस की सूरत देखकर नवाब साहिब और में और लेडी हिम्मत क़दर सबको हंसी आती है।
नवाब साहिब और उनकी लेडी साहिबा तो फिर कभी यके पर नहीं बैठीं और ना बैठींगी, लेकिन में अब भी बैठता हूँ। सवारी माशा अल्लाह ख़ूब है।
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