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ऊपर नीचे और दरमियान

सआदत हसन मंटो

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MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    अभिजात्य वर्ग के छल कपट और उनके शील-संकोच पर आधारित एक ऐसी कहानी है जिसमें बड़ी उम्र के पति-पत्नी के शयनकक्ष के मामलों को दिलचस्प अंदाज़ में बयान किया गया है।

    मियाँ साहब: बहुत देर के बा’द आज मिल बैठने का इत्तेफ़ाक़ हुआ है।

    बेगम साहिबा: जी हाँ,

    मियाँ साहब: मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर ना-अह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारियाँ सँभालनी ही पड़ती हैं।

    बेगम साहिबा: अस्ल में आप ऐसे मुआमलों में बहुत नर्म दिल वाक़े हुए हैं, बिल्कुल मेरी तरह।

    मियाँ साहब: हाँ, मुझे आपकी सोशल ऐक्टिविटीज़ का इल्म होता रहता है। फ़ुर्सत मिले तो कभी अपनी वो तक़रीरें भिजवा दीजिएगा जो पिछले दिनों आप ने मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर की हैं... मैं फ़ुर्सत के औक़ात में उनका मुतालेआ’ करना चाहता हूँ।

    बेगम साहिबा: बहुत बेहतर।

    मियाँ साहब: हाँ बेगम, वो मैंने आपसे उस बात का ज़िक्‍र किया था।

    बेगम साहिबा: किस बात का?

    मियाँ साहब: मेरा ख़याल है, ज़िक्‍र नहीं किया... कल इत्तेफ़ाक़ से मैं मँझले साहब-ज़ादे के कमरे में जा निकला, वो लेडी चैटर्लीज़ लवर पढ़ रहा था।

    बेगम साहिबा: वो रुस्वा-ए-ज़माना किताब:

    मियाँ साहब: हाँ बेगम।

    बेगम साहिबा: आपने क्या किया?

    मियाँ साहब: मैंने उससे किताब छीन कर ग़ायब कर दी।

    बेगम साहिबा: बहुत अच्छा किया आपने।

    मियाँ साहब: अब मैं सोच रहा हूँ कि डाक्टर से मशवरा करूँ और उसकी रोज़ाना ग़िज़ा में तबदीली क़रा दूँ।

    बेगम साहिबा: बड़ा सही क़दम उठाएँगे आप।

    मियाँ साहब: मिज़ाज कैसा है आपका?

    बेगम साहिबा: ठीक है।

    मियाँ साहब: मेरा ख़याल था कि आज आप से... दरख़्वास्त करूँ।

    बेगम साहिबा: ओह: आप बहुत बिगड़ते जा रहे हैं।

    मियाँ साहब: ये सब आपकी करिश्मा-साज़ियाँ हैं।

    बेगम साहिबा: लेकिन आपकी सेहत?

    मियाँ साहब: सेहत? अच्छी है लेकिन डाक्टर से मशवरा किए बगैर कोई क़दम नहीं उठाऊँगा... और आपकी तरफ़ से भी मुझे पूरा इत्मीनान होना चाहिए।

    बेगम साहिबा: मैं आज ही मिस सिलढाना से पूछ लूँगी।

    मियाँ साहब: और मैं डाक्टर जलाल से।

    बेगम साहिबा: क़ाइदे के मुताबिक़ ऐसा ही होना चाहिए।

    मियाँ साहब: अगर डाक्टर जलाल ने इजाज़त दे दी?

    बेगम साहिबा: अगर मिस सिलढाना ने इजाज़त दे दी... मफ़लर अच्छी तरह लपेट लीजिए। बाहर सर्दी है।

    मियाँ साहब: शुक्‍रिया।

    *

    डाक्टर जलाल: तुम ने इजाज़त दे दी?

    मिस सिलढाना: जी हाँ।

    डाक्टर जलाल: मैंने भी इजाज़त दे दी... हालाँकि शरारत के तौर पर...

    मिस सिलढाना: हालाँकि शरारत मैं भी चाहती थी कि इजाज़त दूँ।

    डाक्टर जलाल: लेकिन मुझे तरस गया।

    मिस सिलढाना: मुझे भी।

    डाक्टर जलाल: पूरे एक बरस के बा’द वो..

    मिस सिलढाना: हाँ पूरे एक बरस के बाद।

    डाक्टर जलाल: मेरी उँगलियों के नीचे उसकी नब्ज़ तेज़ हो गई, जब मैंने उसको इजाज़त दी।

    मिस सिलढाना: उसकी भी यही कैफ़ियत थी।

    डाक्टर जलाल: उसने मुझसे डरते हुए कहा, डाक्टर! ऐसा मा’लूम होता है, मेरा दिल कमज़ोर हो गया है... आप कार्डियोग्राम लीजिए...

    मिस सिलढाना: उसने भी मुझसे यही कहा।

    डाक्टर जलाल: मैंने उसके टीका लगा दिया।

    मिस सिलढाना: मैंने भी... सिर्फ़ सादे पानी का।

    डाक्टर जलाल: सादा पानी बेहतरीन चीज़ है।

    मिस सिलढाना: जलाल! अगर तुम उस बेगम के शौहर होते?

    डाक्टर जलाल: अगर तुम उस मियाँ की बीवी होतीं?

    मिस सिलढाना: मेरा कैरेक्टर ख़राब हो गया होता।

    डाक्टर जलाल: मेरा जनाज़ा उठ गया होता।

    मिस सिलढाना: ये भी तुम्हारे कैरेक्टर की ख़राबी कहलाती।

    डाक्टर जलाल: हम जब भी सोसाइटी के इन उल्लूओं को देखने आते हैं, हमारा कैरेक्टर ख़राब हो जाता है।

    मिस सिलढाना: आज भी होगा?

    डाक्टर जलाल: बहुत ज़्यादा।

    मिस सिलढाना: मगर मुसीबत ये है कि उनका लंबे-लंबे वक़्फ़ों के बा’द होता है।

    *

    बेगम साहिबा: लेडी चटर्लीज़ लवर, ये आपने तकिए के नीचे क्यों रखी हुई है?

    मियाँ साहब: मैं देखना चाहता था कि ये किताब कितनी बे-हूदा और वाहियात है।

    बेगम साहिबा: मैं भी आपके साथ देखूँगी।

    मियाँ साहब: मैं जस्ता-जस्ता देखूँगा, पढ़ता जाऊँगा। आप भी सुनती जाइए।

    बेगम साहिबा: बहुत अच्छा रहेगा।

    मियाँ साहब: मैंने मँझले साहबज़ादे की रोज़ाना ग़िज़ा में डाक्टर के मशवरे से तबदीलियाँ करा दी हैं।

    बेगम साहिबा: मुझे यक़ीन था कि आपने इस मुआमले में ग़फ़लत नहीं बरती होगी।

    मियाँ साहब: मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी आज का काम कल पर नहीं छोड़ा।

    बेगम साहिबा: मैं जानती हूँ... और ख़ास कर आज का काम तो आप कभी...

    मियाँ साहब: आपका मिज़ाज कितना शगुफ़्ता है...

    बेगम साहिबा: ये सब आपकी करिश्मा-साज़ियाँ हैं।

    मियाँ साहब: मैं बहुत महज़ूज़ हुआ हूँ... अगर आपकी इजाज़त हो तो...

    बेगम साहिबा: ठहरिए! क्या आपने दाँत साफ़ किए?

    मियाँ साहब: जी हाँ: मैं दाँत साफ़ कर के और डेटॉल के ग़रारे कर के आया था।

    बेगम साहिबा: मैं भी।

    मियाँ साहब: अस्ल में हम दोनों एक दूसरे के लिए बनाए गए थे।

    बेगम साहिबा: इसमें क्या शक है।

    मियाँ साहब: में जस्ता-जस्ता ये बे-हूदा किताब पढ़ना शुरू’ करूँ?

    बेगम साहिबा: ठहरिए! ज़रा मेरी नब्ज़ देखिए।

    मियाँ साहब: कुछ तेज़ चल रही है... मेरी देखिए।

    बेगम साहिबा: आपकी भी तेज़ चल रही है।

    मियाँ साहब: वजह?

    बेगम साहिबा: दिल की कमज़ोरी।

    मियाँ साहब: यही वज्ह हो सकती है... लेकिन डाॅक्टर जलाल ने कहा था कोई ख़ास बात नहीं।

    बेगम साहिबा: मिस सिलढाना ने भी यही कहा था।

    मियाँ साहब: अच्छी तरह इत्मीनान कर के उसने इजाज़त दी थी?

    बेगम साहिबा: बहुत अच्छी तरह इत्मीनान कर के इजाज़त दी थी।

    मियाँ साहब: तो मेरा ख़याल है कोई हर्ज नहीं।

    बेगम साहिबा: आप बेहतर समझते हैं... ऐसा हो, आपकी सेहत...

    मियाँ साहब: और आपकी सेहत भी...

    बेगम साहिबा: अच्छी तरह सोच समझ कर ही क़दम उठाना चाहिए।

    मियाँ साहब: मिस सिलढाना ने उसका तो बंदोबस्त कर दिया है न?

    बेगम साहिबा: किसका? हाँ, हाँ, उसका तो बंदोबस्त कर दिया है उसने।

    मियाँ साहब: या’नी उस तरफ़ से तो पूरा इत्मीनान है।

    बेगम साहिबा: जी हाँ:

    मियाँ साहब: ज़रा अब देखिए नब्ज़?

    बेगम साहिबा: अब तो... ठीक चल रही है... मेरी?

    मियाँ साहब: आपकी भी नॉर्मल है।

    बेगम साहिबा: इस बे-हूदा किताब का कोई पैरा तो पढ़िए।

    मियाँ साहब: बेहतर... नब्ज़ फिर तेज़ हो गई।

    बेगम साहिबा: मेरी भी।

    मियाँ साहब: नौकरों से मतलूबा सामान रखवा दिया है आपने कमरे में?

    बेगम साहिबा: जी हाँ: सब चीज़ें मौजूद हैं।

    मियाँ साहब: अगर आपको ज़हमत हो तो मेरा टेमप्रेचर ले लीजिए।

    बेगम साहिबा: क्या आप तकलीफ़ नहीं कर सकते... स्टॉप वाच मौजूद है। नब्ज़ की रफ़्तार भी देख लीजिए।

    मियाँ साहब: हाँ: ये भी नोट होनी चाहिए।

    बेगम साहिबा: स्मेलिंग सॉल्ट कहाँ है?

    मियाँ साहब: दूसरी चीज़ों के साथ होना चाहिए।

    बेगम साहिबा: जी हाँ... पड़ा है तिपाई पर।

    मियाँ साहब: कमरे का टेमप्रेचर मेरा ख़याल है थोड़ा सा बढ़ा देना चाहिए।

    बेगम साहिबा: मेरा भी यही ख़याल है।

    मियाँ साहब: निक़ाहत ज़्यादा हो गई तो मुझे दवा देना भूलिएगा।

    बेगम साहिबा: मैं कोशिश करूँगी अगर...

    मियाँ साहब: हाँ हाँ...: ब-सूरत-ए-दीगर आप तकलीफ़ उठाईएगा।

    बेगम साहिबा: आप ये सफ़हा... ये पूरा सफ़हा पढ़िए...

    मियाँ साहब: सुनिए:...

    बेगम साहिबा: ये आपको छींक क्यों आई?

    मियाँ साहब: मा’लूम नहीं।

    बेगम साहिबा: हैरत है।

    मियाँ साहब: मुझे ख़ुद हैरत है।

    बेगम साहिबा: ओह... मैंने कमरे का टेम्प्रेचर बढ़ाने के बजाय घटा दिया था... मुआफ़ी चाहती हूँ।

    मियाँ साहब: ये अच्छा हुआ कि छींक गई और बर वक़्त पता चल गया।

    बेगम साहिबा: मुझे बहुत अफ़सोस है।

    मियाँ साहब: कोई बात नहीं। बारह क़तरे ब्राँडी इसकी तलाफ़ी कर देंगे।

    बेगम साहिबा: ठहरिए...: मुझे डालने दें। आपसे गिन्ने में ग़लती हो जाया करती है।

    मियाँ साहब: ये तो दुरुस्त है, आप डाल दीजिए।

    बेगम साहिबा: आहिस्ता-आहिस्ता पीछे।

    मियाँ साहब: इससे ज़्यादा आहिस्ता और क्या होगा?

    बेगम साहिबा: तबीअ’त ब-हाल हुई?

    मियाँ साहब: हो रही है।

    बेगम साहिबा: आप थोड़ी देर आराम कर लें।

    मियाँ साहब: हाँ... मैं ख़ुद इसकी ज़रूरत महसूस कर रहा हूँ।

    नौकर: क्या बात है , आज बेगम साहिबा नज़र नहीं आईं?

    नौकरानी: तबीअ’त ना-साज़ है उनकी।

    नौकर: मियाँ साहब की तबीअ’त भी ना-साज़ है।

    नौकरानी: हमें मा’लूम था।

    नौकर: हाँ: लेकिन कुछ समझ में नहीं आता।

    नौकरानी: क्या?

    नौकर: ये क़ुदरत का तमाशा... हमें तो आज बिस्तर-ए-मर्ग पर होना चाहिए था।

    नौकरानी: कैसी बातें मुंह से निकालते हो। बिस्तर-ए-मर्ग पर हों वो...

    नौकर: छेड़ो उनके बिस्तर-ए-मर्ग का ज़िक्‍र... बड़ा शानदार होगा... ख़्वाह म-ख़्वाह मेरा जी चाहेगा कि उठा कर अपनी कोठरी में ले जाऊँ।

    नौकरानी: कहाँ चले?

    नौकर: बढ़ई ढूँडने जा रहा हूँ... चारपाई अब बिल्कुल जवाब दे चुकी है।

    नौकरानी: हाँ: उससे कहना, मज़बूत लकड़ी लगाए।

    स्रोत:

    Upar, Neeche Aur Darmiyan (Pg. 299-312)

    • लेखक: सआदत हसन मंटो
      • प्रकाशक: साक़ी बुक डिपो, दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 1989

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