शो कॉज़ नोटिस
रोचक तथ्य
कराची के एक दफ़्तर में उस वक़्त एक अजीब सूरत-ए-हाल पैदा हो जाती है जब एक सिफ़ारशी और इनतहाई ना-एहल आदमी ताईनात किया जाता है और फिर।।
हमारे बंस बाग़ वाले दफ़्तर में तीन आदमी ऐसे हैं जिनमें दो का नाम मै इस अफ़साने सैग़ा राज़ में रखूँगा लेकिन सब के बारे में मजमूई तौर पर अलबत्ता ये ज़रूर बताना चाहूँगा कि वो सब काम-चोर हैं। जी हाँ काम-चोर हैं। मुस्तक़िल लेट आते हैं और हमेशा छुट्टी के टाइम से तक़रीबन दो घंटे पहले घर चले जाते हैं। जब उनमें एक से पूछा गया कि भाई ये क्या वतीरा है तो फ़रमाने लगे।
“इतनी तनख़्वाह में तो सिर्फ इतना ही हो सकता है भाई”
मैं ख़्वाह-मख़ाह में किसी का बुरा नहीं चाहता इसलिए मैं नया मुआमला तीन महीने तक दबाए रखा और अपनी दानिस्त में ये कह कर उनको ढील दी कि शायद कोई पेचिदा क़ीस्म के घरेलू मसाइल हों लेकिन जब उनके इस अमल के तवातर और तक़ातुर में कोई फ़र्क़ ना आया तो मेरे सब्र का पैमाना लबरेज़ हो गया। मज्बुरान्न मुझे मशहदी साहिब को बताना पड़ा।
क्या करें उनका ? इस हट-धर्मी का क्या ईलाज हो? और आप ये भी बता रहे हैं तीन हैं वो।
जी सर तीन हैं ।।सर मेरा ख़्याल है उनको शोकॉज नोटिस भिजवा देते हैं.
मुहतरम रज़ा हुस्न आफ़ंदी साहिब आप भी कमाल करते हैं वैसे। यानी आप आबिद अली साहिब को भी शो काज़ नोटिस देंगे।
सर कोई चारा ही नहीं । जिस पोस्ट पर बिठा कर उन्हें चार्ज दिया गया है उनके अंदर क़ाबिलीयत ही नहीं।। वो ना-अहल हैं ।।क़ाबिलीयत को तो छोड़ें उन्हें तो इदराक ही नहीं कि उनके जॉब की नौईयत किया है।
सरकारी काम में ग़फ़लत कर रहे हैं वो।।हराम खा रहे हैं वो।। आप बताएं मै और क्या करूँ? ।
देखें आफ़ंदी साहिब आबिद अली साहिब के सर पर किसी का दस्त-ए-शफ़क़त है और उनकी नौकरी से यूँ समझें एक तरह से हम सबकी नौकरियाँ वाबस्ता हैं। आप ऐसा क्यों नहीं करते कि उनकी ख़ताओं से दरगुज़र करें। । उनको एक हफ़्ता और दें शायद इस हीले से कुछ बेहतरी आए।। दो तीन दिन तो आदमी वैसे भी लेट हो ही जाता है।। इस के लिए भी इतनी शिद्दत ज़रूरी है? या ये भी मुम्किन नहीं आपके लिए?
दर-गुज़र ही कर रहा हूँ सर।। पिछले तीन महीने से।
तीन महीने से? हैं ? तो क्या आप मुझे ये बताना चाहते हैं कि बेहतरी की उम्मीद बिल्कुल मफ़क़ूद है?। है ना ।। फिर भी कोई और तरीक़ा सोचें, शो-कॉज वाले तरीक़े में शिद्दत है
ये बातें मेरे और मशहदी साहिब के बीच हुईं नतिजतन्न में मख़मसे में पड़ गया।
मसला ऐसे शुरू हुआ कि हमारे दफ़्तर में एक आदमी ताईनात हुआ या यूँ कहें कि इंतिहाई बे क़ाइदगी से ताईनात किया गया। मौसूफ़ के ना तो तालमी अस्नाद पूरे थे और ना ही वो इस मन्सब के अहल थे लेकिन किसी असर रसूख़ वाले के क़रीबी हलक़ा-ए-अर्बाब में थे। उनके लेट आने और वक़्त से पहले जाने की रूदाद मै आपको सुना चुका हूँ लेकिन ये भी बताता चलूं के उनके देखा देखी दो और भी साहिबान भी उनकी तक़लीद में इसी रविश पर चल पड़े।
अब मशहदी साहिब की इस तंबीह से ये मसला पैदा हुआ कि मै कोई ऐसा काम नहीं कर सकता था जिससे आबिद अली साहिब नाराज़ हो जाएं।मेरा दिल ना माना ।। मुझे ये एक तरह से ख़ियानत सी लगी।। इस मसले का हल भी तो कोई नहीं था सो तौ-अन करहन मैंने शो कॉज नोटिस वाला ख़्याल वापिस ले लिया और उस शाम मुनीर साहिब से मिला जो मेरे ही दफ़्तर में काम करते हैं।
तो मसला ये है कि उसे ना सिर्फ काम पर रखना है बल्कि उस का दिल भी रखना है। है ना।
फिर जैसे यकायक चौंक पड़े
आप चशमपोशी से काम नहीं ले सकते? इस में क्या दिक़्क़त है” ।
है ना ।। कितनी चशमपोशी से काम लूँ।। तीन महीने हो गए हैं ? तीन!
मेरा मश्वरा मानें आप ऐसा करें उनका काम बाक़ी लोगों में बराबर बांट दिया करें। आप सोमरो साहिब और नवेद साहिब को उनका काम थमा दें । काम भी हो जाया करेगा और वो ऑफ़िस भी आता जाता रहे।। साँप मरा ना मरा लाठी ज़रूर बच गई” ।
नहीं नहीं मुनीर साहिब ये काम मुश्किल हो जाएगा, वो दोनों पहले से अपने काम देख रहे हैं और मैं कहूँ तो कर तो वो देंगे लेकिन ये ठीक बात नहीं है। सोमरो साहिब की बेगम नर्स है और नाइट शिफ़्ट करती हैं। उन्हें अपनी फ़ालिजज़दा वालिदा की ख़बर-गिरी के लिए बरवक़्त पहुँचना पड़ता है और अगर में उनका काम ज़्यादा कर दूँ तो शायद उन्हें रुकना पड़ जाये।। मैं ये नहीं चाहता।। ज़्यादती हो जाएगी।
ये बात यहीं ख़त्म हो गई लेकिन यकायक मुझे ख़्याल आया कि और दफ़्तरों में भी तो ऐसे लोग होंगें। वो भला किया करते हैं उनका?
ये अछूता ख़्याल आया और मैं ने महकमा-ए-तालीम में अपने बर्दार-ए-निसबती का नंबर मिलाया
हाँ रज़ा भाई यहाँ भी बिलकुल ऐसे लोग हैं जिनको तालीम की फ़राहमी या इस से जड़े किसी भी कॉन्सेप्ट से दूर का भी वास्ता नहीं ।। सिफ़ारशी लोग हैं।। ईलाज के तौर पर हम उन्हें बे-तहाशा छुट्टियाँ देते हैं , उन्हें ऐसे काम देते हैं जिनका तालीम की फ़राहमी से दूर का ताल्लुक़ भी नहीं।
मसला कैसे काम?क्या आप ये बताना चाहते हैं कि वो मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते हैं?
हिना ।।मुफ़्त की तो ख़ैर नहीं । काम करते हैं ।।जैसे उनको कह दिया अख़बार की सुर्ख़ियाँ काट कर काग़ज़ पर लगा दें, रेलवे स्टेशन फ़ोन कर के पूछ लें कि शाम की गाड़ी लेट तो नहीं।।बिल्कुल उस क़बील के काम।।हल्के लेकिन शुमार में बहरहाल काम?
शाम की गाड़ी वाली आपने भली कही वैसे। एक सतरह ग्रेड ऑफ़िसर से आप ये काम ले रहे हैं ।।अपरेटर का काम ?। हैरत की बात है!
रज़ा भाई वो अपरेटर ही तो हैं लेकिन बस उन पर कोई मेहरबान हो गया है जो उनको अफ़्सर बना गया है।।मैं उनकी जगह होता तो शर्म के मारे ख़ुद ही ये काम छोड़ देता।
मुझे अन्य बात नहीं भाई और मैंने इस मसले पर अज़ सर-ए-नौ सोचा
ये भी तो हो सकता है कि मैं उन्हें अपनी मातहती से आज़ाद करूँ और उन्हें चांडेवि साहिब या सिद्दीक़ी साहिब के हवाले करूँ, दूसरे सैक्शन में।।मैंने सोचा ये बेहतर हल है।
इस तरकीब में कराहत ज़रूर थी लेकिन इस से मेरे सैक्शन में नज़म-ओ-ज़ब्त दुबारा आ जाता अलबत्ता महकमे को इस का फ़ायदा सिफ़र होता। ये बात दरुस्त है कि मेरे सेशनो में आबिद अली साहिब हों या ना हों इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था लेकिन चांडेवि साहिब मुफ़्त में मसले में आ जाते।। और सिद्दीक़ी साहिब ।। वो एक इंतिहाई नर्म-दिल आदमी थे और मुझे पूरा यक़ीन था वो उनका काम ख़ुद करना शुरू कर देते। मैंने ये ख़्याल भी यकसर तर्क कर दिया।
दफ़्तरों में इस क़िस्म के मसाईल के हल के लिए काफ़ी रास्ते होंगें लेकिन सर-ए-दस्त मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। टी ब्रेक में इसहाक़ भाई से बात हुई तो वो पहले तो बहुत मुस्कुराए और फिर क़हक़ा मार कर हँसने लगे।
आप भी कमाल करते हैं इसहाक़ भाई, मैंने कोई लतीफ़ा तो नहीं सुनाया है।। में एक संजीदा मसले में गिरफ़्तार हूँ और आपकी मदद या मश्वरे का तालिब हूँ।
रज़ा भाई जब मसला बहुत संजीदा हो और उसका हल ना हो तो उसे मज़ाक़ बना दिया करें। मेरे सैक्शन में ऐसा एक आदमी है, बिल्कुल उसी तरीक़ पर चलने वाला।। उसे कुछ नहीं आता लेकिन किसी सियासतदान का चहेता है तो में कुछ भी नहीं कर सकता ।और तो और मेरे सैक्शन इंचार्ज ख़लीक़ साहिब भी इस में कोई मुआवनत नहीं करते सो मैंने उस का एक अछूता हल निकाला।
हाँ यही तो मैं चाहता था।
हल ये है कि आप ये फ़र्ज़ कर लें कि वो वहाँ है ही नहीं या यूँ समझें कि वो वहाँ है लेकिन आप उसे काम नहीं देना चाहते।। जैसे वो काम पर माईल है लेकिन आप नहीं चाहते कि वो ये छोटा मोटा काम करे।। या यूँ कहें ये सारे काम इन मौसूफ़ के करने के हैं ही नहीं वो तो किसी बड़े काम के लिए ताईनात हुआ है।। जब बड़ा काम आएगा तो उसे दे देंगे।। बसरो-ए-चशम।
इसहाक़ भाई कि ये बात सख़्त मुनाफ़क़त पर मबनी थी लेकिन इस में उनका कोई क़ुसूर नहीं। सारा क़ुसूर उनके सैक्शन इंचार्ज का था या शायद उस सियास्तदान का था। मैं सारा दिन इस मसले पर सोचता शाम को घर आ गया।
अगले दिन उबैद साहिब ने मुझे एक और मश्वरा दिया।
क़िबला आफ़ंदी साहिब आप ऐसा क्यों नहीं करते उन्हें ओ -ऐस -डी बना दें।
मैं भौंचक्का रह गया।
ऑफीसर आन स्पेशल डयूटी? लेकिन किस सुवाब-दीदी इख़तियार के बलबूते पर? दूसरे वो कोई सिवल सर्वेंट थोड़ी हैं।। ऑफ़िस वर्कर हैं ।।रोज़ाना काम पर आते हैं।।चाय पीते हैं।।ऑफ़िस में दिखाई देते हैं।।वो बस काम नहीं करते उस का कोई हल है आपके पास? ।
इस लिए तो कह रहा हूँ उनके काम की नौईयत सरकारी खाते में ओ -ऐस डी लिख दें।। ये एक ऐसी इस्तिलाह है एक साएबान की तरह तमाम ना पसंदीदा साहिबान को अपने नीचे समो लेती है।।
उबैद साहिब का मश्वरा नाक़ाबिल-ए-अमल था। एक ख़्याल ये भी ज़हन में आया कि उनके लिए किसी कोर्स वग़ैरा का इंतिज़ाम करूँ जिसमें उनको दफ़्तर के काम की ज़रूरत और तरीका-ए-कार के बारे में पता चले। ये अछूती तरकीब लेकर मैंने अगले रोज़ उन्हें अपने दफ़्तर में बुलाया और उन्हें दो दिन की छुट्टी देकर इस्लामाबाद भेजवा दिया।
जैसे बाद में पता चला वो इस्लामाबाद नहीं गए । मौसूफ़ चार दिन बाद आए तो ये अक़दा खुला कि वो बदीन में तीतरों का शिकार खेलने गए थे। मुझे ये नहीं इल्म कि इस बात में कितनी सदाक़त है या ये कि बदीन तीतर के शिकार के लिए कितना मौज़ूं मुक़ाम है लेकिन इस बात से मुझे सख़्त तैश आया कि उन्होंने इस छुट्टी की मद में टी –ए डी-ए की दरख़ास्त भी दे डाली थी।
ये सारी बात मशहदी साहिब से छिपी ना रह सकी।
तो आप मुझे ये बता रहे हैं कि आपने अपना महदूद सुवाब-दीदी इख़तियार इस्तिमाल करते हुए उनके लिए कोर्स का इंतिज़ाम करवाया था।। कमाल करते हैं आप आफ़ंदी साहिब।।ख़ुद नहीं पता होता तो पूछ तो लेते कम अज़ कम।।अब देखें कल को उनका पुश्तपनाह् कह देगा कि ये साहिब इन कोर्सों की वजह से इतनी क़ाबलियत का अहल हो गया है कि उसे महकमे में इंचार्ज बनाया जाये।। लिख रखें ।।आप ही की कुर्सी आएगी इस रेले की लपेट में।
मुझे लफ़्ज़ रेले से कराहत है और वो ऐसे कि जब मैं बलोचिस्तान में ताईनात था तो इस का इस्तिमाल पेशाब के लिए सुना । मैंने होंट काटे।
सर इन साहिब ने वो कोर्स अटेंड ही नहीं किया तो वो कैसे कह सकते हैं कि उन्होंने मुजव्वज़ा क़ाबिलीयत का मयार हासिल कर लिया है। बाक़ौल उनके वो तो बदीन में तीतरों का शिकार खेल रहे थे।।क्या इतनी अंधेर नगरी है? ।
क़िबला आफ़ंदी साहिब-ए-होश के नाख़ुन लें।। उतनी ही अंधेर नगरी है।। आपके इत्तिला के लिए अर्ज़ है कि इस्लामाबाद ऑफ़िस से उनके क़ाबिलीयत का इमतिहान पास करने का सर्टफ़ीकेट आ गया है।। इमतियाज़ी नंबरों से ऑफ़िस मैनेजमैंट का इमतिहान पास किया है आपके इस आबिद अली साहिब ने। अब ये ना पूछें कि उनके पास कौनसा सुलैमानी क़ालीन है कि जिसकी बदौलत वो बदीन में रह कर भी इस्लामाबाद हो आते हैं , कोर्स में भी इमतियाज़ी नंबर ले लेते हैं और तीतर भी शिकार कर लेते हैं।। है ना कमाल की बात? ।
उन्होंने अपने ख़ुशक होंटों पर ज़बान फेरी।
आप एक काम ये करें कि उनको अपने साथ अस्सिटैंट लगा लें।। वो आप का साया बन कर आपका काम सीखेंगे। सीखना तो उन्होंने है ही नहीं बस इसी तरह काम चलाते रहीं। उनके जॉब प्लान में ये गुंजाइश अलबत्ता रखें कि वो सुबह के दो घंटे और शाम के दो घंटे घर में काम कर सकते हैं। ये फाईनल सलोशन है। अगराप ये नहीं कर सकते तो फिर कोई और बेहतर तरीक़ा निकालें लेकिन मुझे इस मसले का हल चाहीए।
मैंने फ़ाईलैं हाथ में उठाएं और ज़ेर-ए-लब सिर्फ ये कहा।
सर देख लें अस्सिटैंट तो मैं लगा लूं मगर मेरी कुर्सी और रेले वाली बात सच ही ना हो जाएगी।
मैं उनके एफिस से निकल आया और सच पूछें मुझे ये बात एक आँख नहीं भाई । उसी शाम कोई ड्रामा देख रहा था कि एक ख़याल ज़हन में आया और सोचा कल दफ़्तर जाउंगा तो मशहदी साहिब से बात करूँगा
अगले दिन मशहदी साहिब सारा दिन मिटिंग में मसरूफ़ रहे और सिर्फ शाम को छुट्टी के बाद तीन चार मिनट मिल सके कि उनसे मुलाक़ात कर लूं । मैंने उनके दफ़्तर के दरवाज़े पर दस्तक दी।
कम इन
मैं अंदर दाख़िल हो गया और उनकी तरफ़ मानी-ख़ेज़ नज़रों से देखा।
सर हिल मिल गया है
वो मुस्कुरा कर बोले
बताएं
सर हम ये करते हैं कि उनके पुश्तपनाह् को कहते हैं, जिनके ये चहेते हैं, कि एक नई आसामी पैदा करे।। सतरह ग्रेड की । इंही का महिकमा है इस में उनके लिए दिक़्क़त नहीं होनी चाहीए।
यानी आप भी कमाल करते हैं आफ़ंदी साहिब , एक जान को आया हुआ है और आप एक नया नालायक़ इस दफ़्तर में बो रहे हैं ।। ये तो यक ना शुद दो शुद वाली बात हुई।
सर अगर आप मेरी पूरी गुज़ारिश सन लें तो ।।
हाँ हाँ बताएं।
इस मर्तबा हमारी एक शर्त होगी और वो ये कि बंदा ऐसा होगा जिसमें इस जॉब के सँभालने क़ाबिलीयत होगी भले से इस का इंतिख़ाब वो साहिब ख़ुद करें।
हूँ
इस से फ़ायदा ये होगा कि उन्ही की तवस्सुत से हमें ऐसा आदमी मिल जाएगा जो इस नाअहल का काम करसकता होगा और यूं हम भी ख़ुश और वो भी ख़ुश।
हिना।।। माक़ूल बात मालूम होती है। आप ऐसा करें उस की समरी बनाएँ और कल ही लीटर वज़ारत बुझवा देते हैं अभी तो बहुत देर हो गई है मुझे अपने बेटे को कराटे के लिए के जाना है।
मैं सारी रात बैठा रहा और एक एक हर्फ़ छानक फटक कर एक समरी में पिरो दिए जिससे हमारा मंशा हल होजाता।
अगले दिन सुब्ह-सवेरे मैं बग़ल में फाइलें दबाएमशहदी साहिब के दफ़्तर में गया और उनको लीटर थमा दिया। उन्होंने उसे देखे बग़ैर फाड़ दिया और डस्टबि में फेंक कर क़दरे जलाली अंदाज़ में कहा।
आफ़ंदी साहिब आपने मुझे तीन आदमीयों के मुताल्लिक़ बताया था कि वो ऑफ़िस के नज़म-ओ-ज़बत में बिगाड़ ला रहे हैं, तो उनका क्या कर रहे हैं आप? ।
हाँ सर लेकिन उनके मुताल्लिक़ तो ये बात तै हो चुकी है कि वो काबिल इस्लाह नहीं हैं।
नहीं ये बे क़ाइदगी अब नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है। आप फोरा महिकमाना तादीबी कार्रवाई शुरू करें और इस में हरगिज़ लचक का मुज़ाहरा ना करें। आप उनसे पूछें कि वो अपने तीन महीने पर मुहीत महिकमाना क़वानीन को नज़रअंदाज करने की कोई माक़ूल वजह बताएं और इस बात पर रोशनी डालें कि क्यों ना हम उन्हें नौकरी से बर्ख़ास्त करें।
फिर अपना क़लम मेज़ पर रख दिया और सिलसिला कलाम जारी रखा
आफ़ंदी साहिब ये कोई तरीक़ा नहीं कि आप जब चाहें दफ़्तर आएं और जब जी भाए जाएं। ये सरकारी दफ़्तर है और इस के अंदर मुरव्वजा क़वानीन का इतलाक़ होता है और उन क़वानीन का पाबंद में भी हूँ, आप भी हैं और आपके आबिद अली साहिब और ये दो और साहिबान भी हैं। ये हमारी ही ग़लती है जब हम किसी मुलाज़िम को बेजा ढील देते हैं तो इस की मिसाल एक मुर्दा घोड़े की सी होजाती है।
मुर्दा घोड़ा? ।
हाँ मुर्दा घोड़ा।। बेकार घोड़ा।। जिसका चाहे आप सवार तबदील करें, इस में हरकत बढ़ाने के लिए कमेटी बनाएँ, अपने मयार और एहदाफ़ इतने गिराएँ कि मुर्दा घोड़ा भी उनको हासिल करसके या भले से काग़ज़ों में उसे ज़िंदा साबित करें या उस की कारकर्दगी बढ़ाने के लिए दो और मुर्दा घोड़े भी इस के साथ जोत लें।। ना साहिब ।। मुर्दा घोड़ा नहीं उठे गा।। और एक सुरतान की तरह पूरे ऑफ़िस को निगल लेगा।।इसी तरीक़ पर ये आबिद अली साहिब और ये दो अफ़राद मुर्दा घोड़े हैं ।।कभी काम नहीं करेंगे।। मेरी अथाड़ती पर आप दफ़्तर से तमाम बीमार अनासिर को तादीबी कार्रवाई कर के निकालें।
फिर पान की पैक थूकते हुए कहा।
आफ़ंदी साहिब हम सब हकूमत-ए-पाकिस्तान के मुलाज़िम हैं और हमारे पेश-ए-नज़र किसी सियास्तदान का नहीं बल्कि मजमूई तौर पर रियासत पाकिस्तान का मुफ़ाद होना चाहिए।।अब आपको जो बताया गया है ऐस -ओ-पेज के मुताबिक़।
कर गुज़रीं।। लेकिन टहरें आज नहीं ।।कल।। सुबह ही सुबह।
मैं मशहदी साहिब की इस लाज़वाल किस्म की जुराअत पर परेशान हो गया और एक ख़्याल ये भी आया कि कहीं इस तूफ़ान की लपेट में मैं ना आजाऐं।मैं अपने ऑफ़िस में आकर बैठ गया। मुझे उनकी कल वाली बात तो बिलकुल समझ नहीं आई। अगर करना हैतो आज कर देते कल तक इंतिज़ार की क्या ज़रूरत थी।
घर आया तो शाम को हर तरफ़ हंगामा सा मच गया । हुकूमत और सदर साहिब के तसादुम के नतीजे में असैंबली तहलील कर दी गई और तब मुझ पर मशहदी साहिब की एक दिन बाद की जुराअत की हक़ीक़त खुली।
अगले रोज़ में अपने दफ़्तर आया , कम्पयूटर में पुराना शिविकाज़ नोटिस निकाला ।।इस पर आज की तारीख़ डाली ।।इस को कई ज़ावियों से देखा और फिर कुछ सोच कर इस पर सात दिन पहले की तारीख़ डाली , उस की चार कापीयां प्रिंट कीं ।। उन पर दस्तख़त सब्त किए और एक कापी फाईल में रखकर दूसरी कापीयां आबिद अली साहिब और दूसरे दो साहिबान को , जिनका नाम में सीग़ा राज़ में रखूँगा, भेजवा दें।
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