आशोब पर शेर

एक मैं हूँ कि इस आशोब-ए-नवा में चुप हूँ

वर्ना दुनिया मिरे ज़ख़्मों की ज़बाँ बोलती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

क्या रात के आशोब में वो ख़ुद से लड़ा था

आईने के चेहरे पे ख़राशें सी पड़ी हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

सब उम्मीदें मिरे आशोब-ए-तमन्ना तक थीं

बस्तियाँ हो गईं ग़र्क़ाब तो दरिया उतरा

हसन आबिदी

बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना

ख़ुमार-आलूदा आँखें रात-भर की

अज़ीज़ लखनवी

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए