बेख़ुदी पर चित्र/छाया शायरी

बे-ख़ुदी शुऊर की हालत

से निकल जाने की एक कैफ़ीयत है। एक आशिक़ बे-ख़ुदी को किस तरह जीता है और इस के ज़रीये वो इश्क़ के किन किन मुक़ामात की सैर करता है इस का दिल-चस्प बयान इन अशआर में है। इस तरह के शेरों की एक ख़ास जहत ये भी है कि इन के ज़रीये क्लासिकी आशिक़ की शख़्सियत की परतें खुलती हैं।

ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ

ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ

अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे

चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय

बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को

अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं

होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है

चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय

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