ब्लाउज़
युवावस्था के आरम्भ में शरीर में होने वाले परिवर्तनों का श्रेष्ठ वर्णन है। मोमिन एक ऐसे घर में मुलाज़िम है जिसमें शकीला और रज़िया दो खुले विचारों वाली बहनें रहती हैं। शकीला मोमिन के सामने ही ब्लाउज़ नापती, सिलती और पहन कर देखती है जिसके नतीजे में मोमिन के दिमाग़ में विभिन्न प्रकार के विचारों का हुजूम रहने लगता है और फिर एक दिन वो नए आनंद से परिचित होता है।
सआदत हसन मंटो
पेशावर एक्सप्रेस
भारत-पाकिस्तान विभाजन पर लिखी गई एक बहुत दिलचस्प कहानी। इसमें घटना है, दंगे हैं, विस्थापन है, लोग हैं, उनकी कहानियाँ, लेकिन कोई भी केंद्र में नहीं है। केंद्र में है तो एक ट्रेन, जो पेशावर से चलती है और अपने सफ़र के साथ बँटवारे के बाद हुई हैवानियत की ऐसी तस्वीर पेश करती है कि पढ़ने वाले की रुह काँप जाती है।
कृष्ण चंदर
आवारा-गर्द
दुनिया की सैर पर निकले एक यूरोपीय जर्मन लड़के की कहानी। वह पाकिस्तान से भारत आता है और बंबई में एक सिफ़ारिशी मेज़बान का मेहमान बनता है। बंबई में वह कई दिन रुकता है, लेकिन सारा सफ़र पैदल ही तय करता है। रात को खाने की मेज़ पर अपनी मेज़बान से वह यूरोप, जर्मन, द्वितीय विश्व युद्ध, नाज़ी और अपने अतीत के बारे में बात करता है। भारत से वह श्रीलंका जाता है जहाँ सफ़र में एक सिंघली बौद्ध उसका दोस्त बन जाता है। वह दोस्त उसे नदी में नहाने की दावत देता है और खु़द डूबकर मर जाता है। लंका से होता हुआ है वह सैलानी लड़का वियतनाम जाता है। वियतनाम में जंग जारी है और जंग की एक गोली उस नौजवान यूरोपीय आवारागर्द को भी लील जाती है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
क़र्ज़ की पीते थे...
"मिर्ज़ा ग़ालिब की शराब नोशी और क़र्ज़ अदा न करने के बाइस मामला अदालत में पहुँच जाता है। वहाँ मुफ़्ती सद्र-उद-दीन आज़ुर्दा अदालत की कुर्सी पर बिराजमान होते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़लती साबित हो जाने के बाद मुफ़्ती सद्र-उद-दीन जुर्माना की सज़ा देते हैं और अपनी जेब-ए-ख़ास से जुर्माना अदा भी कर देते हैं।"
सआदत हसन मंटो
रौशनी की रफ़्तार
‘रोशनी की रफ्तार’ कहानी कुर्तुल ऐन हैदर की बेपनाह रचनात्मक सलाहियतों के नये आयामों को प्रदर्शित करती है। इस कहानी में वर्तमान से अतीत की यात्रा की गयी है। सैकड़ों वर्षों के फासलों को लाँघ कर कभी अतीत को वर्तमान काल में लाकर और कभी वर्तमान को अतीत के अंदर, बहुत अंदर ले जाकर मानव-जीवन के रहस्यों को देखने, समझने और उसकी सीमाओं तथा संभावनाओं का जायज़ा लेने का प्रयत्न किया गया है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
शेर आया शेर आया दौड़ना
बचपन में स्कूल में पढ़ाई जानी वाली झूठे गड़रिये की कहानी को एक नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है। कहानी में गड़रिये के शेर के न आने के बावजूद चिल्लाने के उद्देश्य को बताया गया है। गड़रिया शेर न होने के बावजूद चिल्लाता है क्योंकि वह चाहता है कि लोग शेर के आने से पहले ही ख़ुद को तैयार रखें। अगर अचानक शेर आ गया तो किसी को भी बचने का मौक़ा नहीं मिलेगा।
सआदत हसन मंटो
जिला-वतन
यह साझा संस्कृति की त्रासदी की कहानी है। उस साझा संस्कृति की जिसे इस महाद्वीप में रहने-बसने वालों के सदियों के मेलजोल और एकता का प्रसाद माना जाता है। इस कहानी में रिश्तों के टूटने, खानदानों के बिखरने और अतीत के उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों के चूर-चूर हो जाने की त्रासदी प्रस्तुत की गई है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
घर तक
अपने गाँव जाते एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो रास्ता भटक गया है। उसके साथ एक सहायक भी है जिसे वह रास्ते में कहानी सुनाता है। रास्ता तलाश करते शाम हो जाती है तो उन्हें दूर से मशाल जलने और औरतों के रोने की आवाज़ आती है। क़रीब जाने पर पता चलता है कि रोने वाली उसकी माँ और बहन हैं। वे दोनों उसके छोटे भाई की क़ब्र के पास रो रही हैं, जिसके लिए वह शहर से खिलौने और कपड़े लेकर आया था।
मुमताज़ शीरीं
ज़नान-ए-मिस्र और ज़ुलैख़ा
यह कहानी इस्लामी परम्परा के नबी यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के मोहब्बत की दास्तान को पुनर्परिभाषित करती है। हालाँकि इस कहानी में उस दास्तान को एक मर्द की बजाए एक औरत के दृष्टिकोण से देखा गया है। इस कहानी में ज़ुलैख़ा का यूसुफ़ से मिलना और फिर युसुफ़ के बंदी बनाए जाने तक की हर घटना को ज़ुलैख़ा अपने दृष्टिकोण से बयान करती हुई साबित करती है कि उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ वह ज़ुलैखा ने अपने स्वार्थवश नहीं बल्कि ख़ुदा के हुक्म से किया।
अख़्तर जमाल
सासान-ए-पंजुम
यह कहानी निकृष्ट लोगों के पतन का मातम है। सासान-ए-पंजुम के ज़माने की इमारत पर अंकित इबारत पढ़ने और उसे समझने के लिए पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं। वो अपनी तमामतर कोशिशों के बावजूद इबारत पढ़ने में कामयाब नहीं होते। तहक़ीक़ के बाद ये साबित कर दिया जाता है कि सासान-ए-पंजुम का वुजूद फ़र्ज़ी है।
नैयर मसूद
मलफ़ूज़ात-ए-हाजी गुल बाबा बेक्ताशी
यह एक प्रयोगात्मक कहानी है। इसमें सेंट्रल एशिया की परम्पराओं, रीति-रिवाजों और धार्मिक विचारों को केंद्र बिंदू बनाया गया है। यह कहानी एक ही वक़्त में वर्तमान से अतीत और अतीत से वर्तमान में चलती है। यह उस्मानिया हुकूमत के दौर की कई अनजानी घटनाओं का ज़िक्र करती है, जिनमें मुर्शिद हैं और उनके मुरीद है। फ़क़ीर हैं और उनका खु़दा और रसूल से रुहानी रिश्ता है। मुख्य किरदार एक ऐसे ही बाबा से मिलती है। वह उनके पास एक औरत का ख़त लेकर जाती, जिसका शौहर खो गया है और वह उसकी तलाश में दर-दर भटक रही है। वह बाबा की उस रुहानी दुनिया के कई अनछुए पहलुओं से वाक़िफ़ होती हैं जिन्हें आम इंसानी आसानी से नज़र-अंदाज़ करके निकल जाता है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।
मुमताज़ मुफ़्ती
आँखें
यह मुग़लिया सल्तनत के बादशाह जहाँगीर के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है। मुग़लिया सल्तनत, उसकी राजनीति, बादशाहों की महफ़िल और उन महफ़िलों में मिलने आने वालों का ताँता। उन्हें मिलने आने वालों के ज़रिए जहाँगीर एक ऐसी लड़की से मिलते हैं जिसकी आँखों को वह कभी भूल नहीं पाते। साइमा बेगम की आँखें। वो आँखें ऐसी हैं कि देखने वाले के दिमाग़ में पैवस्त हो जाती हैं और उसके दिमाग़ पर हर वक़्त उन्हीं का तसव्वुर छाया रहता है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
मालकिन
उस हवेली की पूरे इलाके में बड़ी ठाट थी। हर कोई उसके आगे सिर झुका कर चलता था। लेकिन विभाजन ने सब कुछ बदल दिया था और फिर उसके बाद 1950 के सैलाब ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उसके बाद हवेली को लेकर हुई मुक़दमेबाज़ी ने भी मालकिन को किसी क़ाबिल न छोड़ा। मालकिन का पूरा ख़ानदान पाकिस्तान चला गया था। वहाँ से उनके एक चचा-ज़ाद भाई ने उन्हें बुलवा भी भेजा था लेकिन मालकिन ने जाने से मना कर दिया। वह अपना सारा काम चौधरी गुलाब से करा लिया करती थीं। बदलते वक़्त के साथ ऐसा समय भी आया कि हवेली की बची-खुची शान-ओ-शौकत भी जाती रही और वह किसी खंडहर में तब्दील हो गई। नौबत यहाँ तक आ गई कि मालकिन ने गुज़ारा करने के लिए कुर्ते सीने का काम शुरू कर दिया। इस काम में चौधरी गुलाब उनकी मदद करता है। लेकिन इस मदद को लोगों ने अपने ही तरह से लिया और दोनों को बदनाम करने लगे।