बा'द मुद्दत के गुलाबों की महक आई है
उस ने परदेस से भेजा कोई ख़त है मुझ को
खिल रहे हैं गुलाब ज़ख़्मों के
शुक्रिया आप की नवाज़िश का
था शाख़ पर गुलाब बड़ी शान से मगर
जूड़े में तेरे और तरहदार हो गया
गुलाब काग़ज़ में गुम हैं ऐसे
हसीन मंज़र सराब में गुम
उन्हीं से ताज़गी-ए-ज़ेहन है नसीब मुझे
गुलाब चेहरे हमेशा नज़र में रहते हैं
जो पूरे होने से रह गए थे वो ख़्वाब रक्खे हुए हैं घर में
यक़ीन मानो पुरानी रुत के गुलाब रक्खे हुए हैं घर में