तअल्ली पर चित्र/छाया शायरी

शायरों पर कभी-कभी आत्ममुग्घता

का ऐसा सुरूर छाता है कि वो शायरी में भी ख़ुद को ही आइडियल शक्ल में पेश करने लगता है। ऐसे अशआर तअल्ली के अशआर कहलाते हैं। तअल्ली शायरी का यह छोटा सा इन्तिख़ाब शायद आप के कुछ काम आ सके।

सारे आलम पर हूँ मैं छाया हुआ

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

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