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गृहस्त शास्त्र

यूसूफ़ नाज़िम

गृहस्त शास्त्र

यूसूफ़ नाज़िम

MORE BYयूसूफ़ नाज़िम

    पेश-लफ़्ज़, शादी कर लेना एक निहायत ही अदना बल्कि हक़ीर काम है जिसे दुनिया का हर शख़्स ख़्वाह, वो कितना ही गया गुज़रा क्यों न हो बआसानी अंजाम दे सकता है। शादी करना चूँकि एक मज़हबी और शरई फे़अल है इसलिए शादी के लिए इल्मी क़ाबिलीयत, ज़ेहनी इस्तिदाद, वजाहत, सूरत शक्ल वग़ैरा किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। ये क़ुयूद सिर्फ़ अहलकारी, जमादारी वग़ैरा के लिए हैं, शादी हर क़ैद से आज़ाद और हर शर्त से पाक है।
     
    शादी के लिए दुनिया में पैदा होना और पैदा हो कर जवान हो जाना बहुत काफ़ी है। बा’ज़ सूरतों में शादी के लिए जवान होने की शर्त भी ज़रूरी नहीं होती। कमसिनों के अलावा ज़ईफ़-ओ-मुअम्मर लोग भी शादी कर सकते हैं और करते आए हैं। नतीजतन शादी करने और करके पछताने का आम रिवाज है जो आदाम ता एंदम चला आ रहा है। शादी हर कस-ओ-नाकिस करता है क्योंकि शामत-ए-आमाल जुज़्व-ए-मुक़द्दर है और इंसानी ज़िंदगी आफ़ात-ओ-बलियात से इबारत है। इंसान ख़ता व निस्यान का पुतला है और क़ुदरत ने उसे सिर्फ़ इसलिए पैदा किया है कि वो ज़िंदगी और फिर ज़िंदगी में अज़दवाजी ज़िंदगी का मज़ा चख ले और कहे कि,
     
    हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
     
    अज़दवाजी ज़िंदगी में जो लोग अपनी उम्र-ए-अज़ीज़ का बड़ा हिस्सा ज़ाए कर चुके हैं, उन्होंने अपने पीछे आँख बंद कर के चले आने वालों के लिए चंद उसूल लिख छोड़े हैं, उन्हीं उसूलों का नाम गृहस्त शास्त्र है।
     
    उर्दू ज़बान में अब तक कई गृहस्त शास्त्रें लिखी जा चुकी हैं जिनके कई कई एडिशन छपने के इश्तिहारात इस बात का सबूत हैं कि उनके मुसन्निफ़ीन की अज़दवाजी ज़िंदगी ख़्वाह कितनी ही गई गुज़री क्यों न हो मआशी हैसियत से वो ज़रूर बेफ़िक्रों में शुमार होने लगे होंगे और थोड़ा बहुत इन्कम टैक्स भी अदा करते होंगे लेकिन ये शास्त्रें अब पुरानी हो चुकीं। शौहरों और बीवियों के तर्ज़-ए-फ़िक्र और तर्ज़-ए-मुआशरत में मआशी-ओ-सियासी इन्क़िलाबात ने बड़ी तब्दीलियां पैदा कर दीं और इस वक़्त मार्किट में कोई ऐसी गृहस्त शास्त्र मौजूद नहीं जो नौ गिरफ़्तार शौहरों के लिए मिशअल-ए-राह हो और उनकी निजी ज़रूरियात को पूरा कर सके। इसी क़ौमी-ओ-मिल्ली ज़रूरत को पूरा करने की ग़रज़ से ज़ेर-ए-नज़र मक़ाला, नज़र-ए-नाज़रीन किया जा रहा है। अह्ल-ए-नज़र इस मक़ाले को यक़ीनन काम की चीज़ पाएँगे। फ़ाइतबरो या ऊल-अल-अबसार।
     
    गृहस्त शास्त्र (पहला हिस्सा)
     
    (कमअक़्ल शौहरों के लिए)
     
    बुनियादी उसूल, किसी ने कहा है, “औरत का प्रेम मिस्ल रबर के है जितना औरत से प्रेम करो वो उतना ही ज़्यादा बढ़ता फलता है।”  इसलिए नौ गिरफ़्तार शौहरों को अव्वलीन मश्वरा यही दिया जाता है कि वो उस प्रेम के बारे में पूरी पूरी एहतियात बरतें ताकि ये रबर ज़्यादा फैलने न पाए। अक्सर गृहस्त शास्त्रों में हैनरी विनसेंट का मक़ूला उमूमन नक़ल किया गया है। मौसूफ़ का कहना है, “एक आली दिमाग़ औरत की सोहबत हर मर्द की ज़िंदगी के लिए अच्छी चीज़ है।”
     
    हमारी राय में गृहस्त शास्त्रें लिखने वाले शौक़ीन,  इस मक़ूले को गृहस्त शास्त्रों के लिए चुन कर हैनरी विनसेंट के साथ सख़्त नांसाफ़ी करते हैं। इस मक़ूले को तो उन किताबों की ज़ीनत बनना चाहिए जो शादी की मुख़ालिफ़त में लिखी जाएं। औरत के साथ दिमाग़ और मज़ीद बरआँ आली दिमाग़ की शर्त आइद करके हैनरी विनसेंट ने अपने आपको दुनिया का बेहतरीन तंज़ निगार साबित कर दिया है।
     
    शेख़ सादी का क़ौल है, “उस घर में ख़ुशी और ख़ुशहाली हार नहीं पा सकती जिससे औरत के चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ बाहर आया करती हो। इसका मतलब साफ़ है कि जो चीख़े चिल्लाए नहीं उसके औरत होने में शुबहा है लेकिन इस हक़ीक़त को जान लेने के बाद भी शौहरों को हिम्मत और इस्तिक़लाल से काम लेना चाहिए और अज़दवाजी ज़िंदगी में मुब्तला होने के बाद इस अमर का ख़ासतौर पर ख़याल रखना चाहिए कि औरत ख़्वाह ख़ुद घर के बाहर डोली या डोले में चली जाये लेकिन उसकी चीख़, पुकार घर के बाहर न जाने पाए। ग़ालिब ने इसकी बड़ी कोशिश की लेकिन उनकी कोशिशों का कोई मुफ़ीद नतीजा बरामद न हो सका, पस मरहूम ने तय किया कि,
     
    रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहां कोई न हो
    हमसुख़न कोई न हो और हम ज़बाँ कोई न हो
     
    मौजूदा प्राब्लम भरपूर दौर में तब्दील मकान का सवाल ही नहीं पैदा होता इसलिए हमारे नौजवान शौहरों या शौहर नुमा मर्दों को पूरी तनदही के साथ औरतों के हलक़ से उनकी चीख़ ओ पुकार मद्धम सुरों में निकलवाने की कोशिश करनी चाहिए बल्कि ज़्यादा बेहतर होगा कि शादी के बाद वो ऐसे मकान में रिहायश इख़्तियार करें जो साउंड प्रफ़ू हो या घर में रेडियो का भी होना ज़रूरी है ताकि नाज़ुक मौक़ों पर रेडियो की आवाज़ को पर्दा के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके। मुतवस्सित दर्जे के लोग ग्रामफ़ोन इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे हज़रात जो शादी करने की नौबत पर हूँ अपने मुतालिबात की फ़ेहरिस्त में रेडियो या ग्रामफ़ोन का ज़रूर इज़ाफ़ा करलें।
     
    ज़ेवर और लिबास, ये एक दर्दनाक हक़ीक़त है कि औरतें, अलावा और शौक़ों के लिबास और ज़ेवर की बड़ी दिलदादा होती हैं। इस क़िस्म की बीवियों के मियाओं की तवज्जो उन दो इश्तिहारात की तरफ़ मबज़ूल की जाती है जिनमें रेशमी कपड़ा एक रुपये गज़ और सोना दो रुपये तोला का मुझदा-ए-जाँफ़िज़ा सुनाया गया है। कपड़े की दुकान दिल्ली में और सोने की दुकान अमृतसर में है। ज़रूरतमंद अस्हाब नोट करलें। बनज़र सहूलत हर दो इश्तिहारात की नक़लें बतौर ज़मीमा मक़ाले के आख़िर में दी जाएँगी। लेकिन जो हज़रात, मुक़ाबला निगारों को उन दो फर्म्स का कमीशन एजेंट समझेंगे वो अपना इस बदगुमानी का ख़मियाज़ा ब-रोज़-ए-हश्र ख़ुद भुगतेंगे।
     
    तारीफ़ किस की करनी चाहिए, बीवियों को ख़ुश रखने के लिए पुरानी गृहस्त शास्त्रों में ये तरकीब लिखी गई है कि शौहर मौक़ा ब मौक़ा अपनी बीवियों की सूरत शक्ल की तारीफ़ किया करें। हो सकता है कि अब तक ये नुस्ख़ा कारगर साबित हुआ हो लेकिन नई क़िस्म की ज़ौजाएं ऐसे मामूली टोटकों से क़ाबू में आने वाली चीज़ बाक़ी नहीं रहीं। उनकी ज़ेहनियत यकसर बदल चुकी हैं और ग़ालिबन उन्हें किसी नामालूम ज़रिए से ये पता चल चुका है कि उनकी सूरत शक्ल की तारीफ़ करके मर्दों की आक़िबत काफ़ी ख़राब हो चुकी है। मौजूदा ज़माने में जिन औरतों को फ़िल्म देखने का शौक़ है और ये शौक़ सभी को है, उनके सामने ख़ुद उनकी अपनी तारीफ़ करने के मुक़ाबले में उनकी पसंदीदा एक्ट्रसों की तारीफ़ करना ज़्यादा सूदमंद माना गया है। नए ख़्यालात की बीवियां अपने शौहरों की इस बुलंदी-ए-नज़र और पाकीज़गी-ए-ज़ौक़ के इज़हार पर बड़ी ख़ुश हुआ करती हैं लेकिन इस बात का ख़्याल रखा जाये कि बीवियों के सामने सिवाए ऐक्ट्रस के और किसी औरत की तारीफ़ न की जाये वर्ना बजुज़ नुक़्सान और कुछ हाथ न आएगा। अब ये बात औरतें ही जानें कि इस तज़ाद ख़्याली में उनकी क्या मस्लेहत है।
     
    ऐक्टिंग सीखनी चाहिए, पिछले चंद बरसों से देखा जा रहा है कि जो शौहर अदाकारी के फ़न से बे बहरा हैं वो अज़दवाजी ज़िंदगी के महाज़ पर नाकाम साबित होते हैं। इसलिए शौहरों को थोड़ी बहुत ऐक्टिंग ज़रूर सीखनी चाहिए ताकि घर में मुख़्तलिफ़ औक़ात में मौक़ा महल की मुनासिबत से मुहब्बत, ख़फ़गी और रंज-ओ-ग़म के इज़हार में मदद मिले और बीवी को बख़ूबी मुतास्सिर किया जा सके। मियां-बीवी के आसाबी जंग और सर्द लड़ाई में फ़तह उसी की होती है जो हस्ब-ए-मौक़ा बेहतर ऐक्टिंग करसके। ज़माना अब वो नहीं जो पहले था, लेकिन पहले भी हक़ को कब फ़तह नसीब हुई है।
     
    पड़ोसन का मुआमला, शौहरों को ये भी मालूम होना चाहिए कि हर शख़्स की अज़दवाजी ज़िंदगी पर किसी न किसी पड़ोसन का बिलावास्ता या बिलवास्ता ज़रूर असर पड़ता है। बीवियां अगर अपना राज़ किसी से कहती हैं तो पड़ोसन से। मैके के “खु़फ़ीया पुलिस दर आग़ोश” लोगों के बाद अगर बीवियों का कोई मूनिस-ओ-ग़मख़्वार होता है तो पड़ोसन। उनके दुख-दर्द का कोई साथी है तो पड़ोसन। ग़रज़ ये कि उनके हर मरज़ की दवा पड़ोसन है। किसी नौबत पर मुम्किन है आपको ये शुबहा होने लगे कि ये पड़ोसन है या ज़िंदा तिलिस्मात की बड़े साइज़ की शीशी। आप जब भी घर में दाख़िल होंगे तो या तो पड़ोसन आपकी बीवी के घुटनों से लगी बैठी पान छालिया से शौक़ फ़रमा रही होगी या ख़ुद बीवी पड़ोसन के हाँ ग़ायब होंगी।
     
    याद रखिए पड़ोसन सुर्ख़ ख़तरा है और उसकी जिन्नाती मौजूदगी में आपके इक़तेदार और आपके दस्तार-ए-फ़ज़ीलत की ख़ैर नहीं। पस अगर आप इस ख़तरे की बू सूंघ चुके हैं तो अमली क़दम उठाने में देर न कीजिए। पड़ोसन से छुटकारा पाने की एक और सिर्फ़ एक तरकीब है, पड़ोसन की कभी बुराई मत कीजिए बल्कि बीवी के सामने उसकी तारीफ़ें शुरू कर दीजिए। दूसरे ही दिन इंशाअल्लाह आपके घर का दरवाज़ा पड़ोसन पर हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा बल्कि मुम्किन है आपके सामने मकान बदलने ही मुतालिबा पेश होजाए।
     
    मियां-बीवी की अनबन, मियां-बीवी की अनबन मशहूर है और ये होती भी बड़ी दिलचस्प है। मिसाल के तौर पर अगर अनवर और उसकी बीवी में ठन जाये तो कई दिनों तक ठनी रहेगी हत्ता कि उस वाक़िआ जांकाह की इत्तिला अनवर के दोस्त अकबर को पहुँचेगी। अकबर का जज़्ब-ए-दोस्ती फ़ौरन जोश मारेगा और वो अनवर के घर पहुँच कर किसी न किसी तरकीब से दोनों मसख़रों में सुलह करा देगा और जब दोनों में सुलह हो जाये तो चुपके से अनवर के कान में कहेगा कि दो दिन से हमारे घर में भी यही हाल है और मैंने भी क़सम खा रखी थी कि जब तक वो खाना ख़ुद पेश न करेंगी में कुछ न खाऊंगा। ये सुनकर अनवर को बड़ा दुख होगा और वो फ़ौरन अपनी बीवी को अकबर के हाँ भेजेगा ताकि मुआमला की यकसूई हो जाए। ये बिल्कुल सलामती कौंसिल का सा मुआमला है। सलामती कौंसिल में भी सारी दुनिया के मुदब्बिरीन और सियास जमा होते हैं और वो अपने मुल्क के सिवा बाक़ी तमाम ममालिक के नज़्म-ओ-निस्क़ के बारे में निहायत ही आला दर्जे की तजावीज़ पेश करते और दुनिया वालों से ख़िराज-ए-तहसीन हासिल करते हैं।
     
    ये अहमक़ाना सिलसिला बरसों से क़ायम है लेकिन बात मियां-बीवी की अनबन की थी। शादी के बाद इब्तिदाई दिनों में अनबन मुतलक़ नहीं होती क्योंकि ये फ़ुर्सत का मशग़ला है। आदाद-ओ-शुमार से साबित होता है कि आम तौर से यानी 90 फ़ीसद से ज़्यादा वाक़िआत में मियां-बीवी शादी के तीसरे साल के आग़ाज़ से अपने ज़िंदा रहने का सबूत देते हैं। पहले पल ये अनबन हरकात-ओ-सकनात और इशारों कनायों की हद तक रहती है और रफ़्ता-रफ़्ता तरक़्क़ी करके तेज़ व तुंद गुफ़्तगु और ता’न-ओ-तशनीअ का दर्जा इख़्तियार करती है। सिपाही और पहलवान पेशा ख़ानदानों में ये अनबन बाबू राव पहलवान और मिस नाडिया के शानदार और सनसनीखेज़ फ़िल्मी कारनामों का रूप धारती है और बा’ज़ सफेदपोश लेकिन गर्म मिज़ाज लोगों में यही अनबन सपुर्द सेशन हो जाया करती है। इसलिए बुज़ुर्गों ने अनबन से निमटने के उपाय लिख दिए हैं जिनमें सबसे ज़्यादा मज़हकाख़ेज़ उपाय ये है कि अनबन होने ही न पाए।
     
    हम अपने मक़ाले में ऐसी मुहमल तजवीज़ लिख कर नाज़रीन का दिल नहीं दुखाना चाहते। इसमें शक नहीं कि आम तौर पर मियां-बीवी क़िस्म के लोगों को ये कोशिश करनी चाहिए अनबिन न होने पाए और इसकी हमारे नज़दीक सिर्फ़ एक तरकीब है कि इंसान ख़ुद को वॉटरप्रूफ बना ले।
     
    हम बज़ात-ए-ख़ुद ऐसे लोगों से मिले हैं जिन्होंने अपने आपको वॉटरप्रूफ बना लिया है और हमने महसूस किया है कि ऐसे लोग हस्सास और रक़ीक़ उलक़ल्ब लोगों के मुक़ाबले में बदरजा ख़ुश रहते हैं। उनके घर से न तो बीवी की आवाज़ बाहर निकलती है और न ही बावर्चीख़ाने का धुआँ लेकिन इसके बावजूद अनबन होने के इमकानात बिल्कुल ख़त्म नहीं हो जाते क्योंकि दुनिया का कोई घर ख़्वाह वो सलामती कौंसिल के प्रेसिडेंट का हो या जनरल सेक्रेटरी का अनबन से महफ़ूज़ नहीं और अगर किसी घर में ऐसा नहीं होता तो उसे घर नहीं होटल समझना चाहिए। इसलिए हम अनबन को अज़दवाजी ज़िंदगी का जुज़्व ला यनफ़िक बल्कि ज़्यादा सही अलफ़ाज़ में तुर्रा-ए-इम्तियाज़ समझते हैं। इस ख़्याल के तहत जे़ल में एक अमल दर्ज किया जाता है जो अनबन के वक़ूअ पज़ीर होने के बाद शौहरों को शुरू करना चाहिए। इस अमल के नताइज यक़ीनन मुफ़ीद बरामद होंगे, अमल ये है।
     
    अमल मुसालहत, लड़ाई का दिन बख़ैर-ओ-ख़ूबी गुज़र जाये और रात जब अपनी ज़ुल्फ़ें बिखेर दे तो शौहर अपने बिस्तर पर लेटने के बाद पहले अव्वल कलमा तय्यबा पढ़े और फिर निहायत ख़ुज़ू व ख़ुशूअ के साथ तारीख़-ए-आलम के किसी बड़े हीरो मसलन नपोलियन बोनापार्ट, सिकंदर-ए-आज़म, अमीर तैमूर, राजा पोरस वग़ैरा में से अपनी पसंद और याद के मुताबिक़ किसी एक का ध्यान करे और दिल ही दिल में उस हीरो की तारीफ़ करे कि वाह क्या जलील-उल-क़द्र और अज़ीम उल मरतिबत आदमी था जिसने बड़ी से बड़ी आफ़त की परवाह न की और एक हम हैं कि सिर्फ़ एक अदना बीवी से अनबन हो जाने पर ज़िंदगी से बेज़ार हो गए हैं। तुफ़ है हमारी कम हिम्मती पर, देर तक उन्हीं शर्मनाक ख़्यालात में गुम रहे और सो जाये। सोते में अगर मेदे की गड़बड़ ने मदद की तो ज़रूर इबरत आमोज़ ख़्वाब दिखाई देंगे। सुबह तड़के ही उठ बैठे और हवाइज ज़रूरी से फ़ारिग़ होने से पहले क़िबला-रू खड़े हो कर अपने आप पर नफ़रीं भेजे।
     
    इस अमल के लिए पाँच मिनट का वक़्त काफ़ी है। जब दिल की भड़ास निकल जाये तो हवाइज ज़रूरी से फ़ारिग़ हो, शौहर ख़ुद को निहायत हल्का फुलका महसूस करेगा। बादअज़ां शेव करे। साफ़ सुथरे कपड़े पहने, बालों में तेल और आँखों में सुर्मा लगाए और इस दौरान में कोई ताज़ा फ़िल्मी धुन गुनगुनाता रहे। इस अमल से शौहर को अपने रोएं रोएं में ख़ुशी का जज़्बा सरायत करता महसूस होगा। जब इत्मीनान कुल्ली हो जाए कि वक़्त आ पहुँचा तो बीवी की सिम्त मुस्कराकर देखे बल्कि हो सके तो बत्तीसी निकालिए। यक़ीन-ए-वासिक़ है कि बीवी इस नुमाइश दनदानी का तुर्की ब तुर्की जवाब देगी यानी पहले वो शरमाएगी। अब आपको फ़ौरी अमली इक़दाम करना चाहिए। अमल पूरा हो गया जिसे नाज़रीन नुस्ख़ा-ए- कीमिया समझें और इंदुल ज़रूरत बिला तकलीफ़ इस्तेमाल करें।
     
    राज़ की बात, जहां हमने इतनी बेशक़ीमत और अनोखी बातें बयान कर दी हैं, वहीं हम एक राज़ की बात नाज़रीन को बता देना अपना मज़हबी फ़रीज़ा समझते हैं। वो राज़ की बात ये है कि बीवियों में ख़्वाह और कोई ख़ूबी हो या न हो एक ख़ूबी ज़रूर होती है कि वो अपने शौहरों को शौहर के दोस्तों के मुक़ाबले में हमेशा भोला भाला और मासूम समझती हैं और शौहर की सारी बुराईयों के लिए शौहर को नहीं शौहर के दोस्तों को ज़िम्मेदार ठहराती हैं और इस अक़ीदा पर वो अपना ईमान रखती हैं। बस यही एक बात औरतों को सारे क़सूर माफ़ करवा देती है और हम मर्दों को अल्लाह मियां की मस्लिहत का क़ाइल होजाना पड़ता है कि उन्होंने औरतों को इतना समझदार बनाया। आसान लफ़्ज़ों में यूं समझ लीजिए कि हामिद जो आपका निहायत ही क़दीम दोस्त है आपकी बीवी की नज़रों में उतना ही बुरा है जितने आप हामिद की बीवी की नज़रों में बुरे हैं लेकिन लुत्फ़ ये है कि आप दोनों अपनी अपनी बीवियों की नज़रों में निहायत सीधे सादे इंसान हैं।
     
    बस इसकी कोशिश कीजिए कि बीवी की ये ग़लतफ़हमी हमेशा क़ायम रहे। अगर आपने अपने घर में अपने दोस्तों की पारसाई जतानी चाही तो आप जैसा नाअह्ल और नादान शख़्स कोई और न होगा लेकिन दुनिया में ऐसे भी बदक़िस्मत बस्ते हैं जिनकी बीवियां उल्टी समझ रखती हैं और जो अपने शौहरों से कहती हैं कि तुम तो तबाह हो ही चुके अपने दोस्तों को भी तबाह कर रहे हो।  इस क़िस्म की दहश्त पसंद बीवियों से निमटना ज़रा मुश्किल है। हम अगर क़ुनूती होते तो ऐसे लोगों को सब्र ओ शुक्र करने का मश्वरा देकर अलैहदा होजाते लेकिन ये बात हमारे मन्सब के शायान-ए-शान न होगी, इसलिए हम अपने मक़ाले में ऐसे कम नसीब शौहरों के लिए भी ये नुस्ख़ा तजवीज़ करते हैं कि इस क़िस्म की बीवियां रखने वाले शौहरों को बिल्कुल ही नाउम्मीद न होना चाहिए बल्कि उनकी कोशिश ये होनी चाहिए कि वो ऐसे दोस्त तलाश करें जो ख़ुद उनसे भी दो-चार हाथ आगे हों। जब बीवी पर अपने शौहर के नए दोस्तों का हाल खुलेगा तो तवक़्क़ो की जा सकती है कि उसके ख़्यालात में ख़ातिर-ख़्वाह तब्दीली होगी क्योंकि औरतों में मुवाज़ना करने की सलाहियत ज़रूर मौजूद होती है और यही सलाहियत शौहरों के हक़ में फ़ाल-ए-नेक है।
     
    दस नकाती प्रोग्राम, मक़ाला ख़त्म करने से पहले हम अपने नाज़रीन के लिए एक दस नकाती प्रोग्राम पेश करने की सआदत हासिल करना चाहते हैं जो शौहर मुंदरजा ज़ैल प्रोग्राम पर अमल करेंगे उन्हें कभी कोई कष्ट न होगा।
     
    (1) अगर तुम मुलाज़िम पेशा हो तो कभी बीवी को न बताओ कि तुम्हारी तनख़्वाह क्या है। (2) घर में ख़ामोश रहने की आदत डालो। शादी के पहले ही दिन पर ये ज़ाहिर करो कि तुम कम सुख़न हो, बातें जितनी कम होंगी उतना ही सुकून होगा। (3) जब बीवी को कहीं साथ ले जाना हो तो उसे कम से कम छः घंटों की मोहलत दो। (4) बीवी की तरफ़ हमेशा मुस्कुरा कर देखो लेकिन इस तरह नहीं कि उसे शुबहा हो जाए कि तुम उसे अहमक़ समझ कर मुस्कुराया करते हो बल्कि कुछ इस तरह जिससे वो समझे कि तुम ख़ुदा की क़ुदरत का तमाशा देखकर मसरूर होते हो। बहरहाल घर में हमेशा तुम्हारी बाछें खिली रहें। (5) बीवी से जब भी बात करो तो धीमी आवाज़ से गोया क़ब्र के अंदर से बात कर रहे हो उस की बाज़ाब्ता मश्क़ करनी चाहिए। (6) बीवी को जब भी ख़त लिक्खो तो अपने ख़त में दो-चार अशआर ज़रूर लिक्खो, मसलन,
     
    कभी भेजा न तुमने एक पर्चा
    हमारे दिल को पर्चाया तो होता
     
    या ये कि,
    तुमने किया न याद कभी भूल कर हमें
    हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
     
    (अगर ज़िंदगी ने वफ़ा की और ग़म-ए-अय्याम ने फ़ुर्सत दी तो शौहरों के लिए नमूने के अशआर अलैहदा छपवाए जाऐंगे लेकिन ये कोई हतमी वादा नहीं है इसलिए शौक़ीन हज़रात अपने मतलब के अशआर ख़ुद तलाश करलें। (7) अपनी बीवी में दुनिया की खूबियां मत ढूंढ़ो। अगर बीवी में हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ से एक-आध बात भी काम की नज़र आजाए तो उसे ग़नीमत समझ कर अपनी ख़ुशक़िस्मती पर नाज़ करो और सज्दा-ए-शुक्र बजा लाओ। (8) उस लम्हे से डरो जब बीवी रोने पर आजाती है क्योंकि बीवियों को शबनम की तरह रोना नहीं आता। (9) शादी करने के बाद अपनी ज़िंदगी का ज़रूर बीमा कर वालो, क्योंकि शादी के बाद ज़िंदगी का भरोसा ही क्या है। (10) और आख़िरी नुक्ता ये है कि सब्र करना सीखो। आदमी जितना सब्र करेगा उतना ही ज़्यादा मसरूर होगा। हिस्सा अव्वल ख़त्म हुआ। हिस्सा दोम में बीवियों के लिए गृहस्त शास्त्र के उसूल-ओ-ज़वाबेत बयान किए जाऐंगे।
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