बेस्ट डायलॉग शायरी
आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा
पेट है ख़ाली आँख में हसरत हाथों में गुल-दस्ता है
न हों पैसे तो इस्तक़बालियों से कुछ नहीं होगा
किसी शायर को ख़ाली तालियों से कुछ नहीं होगा
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
बाल खोले नहीं फिरता है अगर वो सफ़्फ़ाक
फिर कहो क्यूँ मुझे आशुफ़्ता-सरी रहती है