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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बेस्ट डायलॉग शायरी

आँख से दूर हो दिल से उतर जाएगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

अहमद फ़राज़

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राहत इंदौरी

ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर

एक नदी में कितने भँवर

जाँ निसार अख़्तर

ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस

तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

बाल अपने उस परी-रू ने सँवारे रात भर

साँप लोटे सैकड़ों दिल पर हमारे रात भर

लाला माधव राम जौहर

आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा

पेट है ख़ाली आँख में हसरत हाथों में गुल-दस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ

अब तवक़्क़ो नहीं रिहाई की

मीर तक़ी मीर

आइना आइना तैरता कोई अक्स

और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है

अतीक़ुल्लाह

हों पैसे तो इस्तक़बालियों से कुछ नहीं होगा

किसी शायर को ख़ाली तालियों से कुछ नहीं होगा

खालिद इरफ़ान

जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे

हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

हम कहते थे शाइरी है वबाल

आज लो घिर गए हसीनों में

वामिक़ जौनपुरी

आईना ले के देख ज़रा अपने हुस्न को

आएगी ये बहार-ए-गुलिस्ताँ ख़िज़ाँ में याद

शाह आसिम

बाल खोले नहीं फिरता है अगर वो सफ़्फ़ाक

फिर कहो क्यूँ मुझे आशुफ़्ता-सरी रहती है

मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही

ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी सुना

क्यूँ परेशाँ मिरा दिमाग़ हुआ

मुज़्तर ख़ैराबादी
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