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इक मौज बहर-हाल बहा ले गई हमको:इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीकी का नाम आधुनिक उर्दू शायरी में बहुत लोकप्रिय और महत्वपूर्ण नाम है। उनके प्रसिद्ध अशआर का चयन आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।

रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़

कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है

रंज कम सहता है एलान बहुत करता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद

शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

इरफ़ान सिद्दीक़ी

सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी

दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

तुम सुनो या सुनो हाथ बढ़ाओ बढ़ाओ

डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें

इरफ़ान सिद्दीक़ी

सरहदें अच्छी कि सरहद पे रुकना अच्छा

सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा

इरफ़ान सिद्दीक़ी

रेत पर थक के गिरा हूँ तो हवा पूछती है

आप इस दश्त में क्यूँ आए थे वहशत के बग़ैर

इरफ़ान सिद्दीक़ी

मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ

तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हम सब आईना-दर-आईना-दर-आईना हैं

क्या ख़बर कौन कहाँ किस की तरफ़ देखता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ

दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे

इरफ़ान सिद्दीक़ी

कहा था तुम ने कि लाता है कौन इश्क़ की ताब

सो हम जवाब तुम्हारे सवाल ही के तो हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

आज तक उन की ख़ुदाई से है इंकार मुझे

मैं तो इक उम्र से काफ़िर हूँ सनम जानते हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उड़े तो फिर मिलेंगे रफ़ाक़तों के परिंद

शिकायतों से भरी टहनियाँ छू लेना

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उस से बिछड़े तो तुम्हें कोई पहचानेगा

तुम तो परछाईं हो पैकर की तरफ़ लौट चलो

इरफ़ान सिद्दीक़ी

आख़िर-ए-शब हुई आग़ाज़ कहानी अपनी

हम ने पाया भी तो इक उम्र गँवा कर उस को

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हम भी पत्थर तुम भी पत्थर सब पत्थर टकराओ

हम भी टूटें तुम भी टूटो सब टूटें आमीन

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ये हम ने भी सुना है आलम-ए-असबाब है दुनिया

यहाँ फिर भी बहुत कुछ बे-सबब होता ही रहता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

वो मुझ में बोलने वाला तो चुप है बरसों से

ये कौन है जो तिरे रू-ब-रू पुकारता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

मैं ख़्वाब देख रहा हूँ कि वो पुकारता है

और अपने जिस्म से बाहर निकल रहा हूँ मैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

क्या जज़्ब-ए-इश्क़ मुझ से ज़ियादा था ग़ैर में

उस का हबीब उस से जुदा क्यूँ नहीं हुआ

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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