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दिल पर शेर

दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब

को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।

मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू मर जाए

कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से

ख़्वाजा मीर दर्द

दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें

जो हमारा हुआ कब वो तुम्हारा होगा

बेख़ुद देहलवी

दिल प्यार की नज़र के लिए बे-क़रार है

इक तीर इस तरफ़ भी ये ताज़ा शिकार है

लाला माधव राम जौहर

दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था

पाना तिरा शायद तुझे खोने के लिए है

हैदर क़ुरैशी

दिल भी 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था

आँसुओं में कहीं गिरा होगा

ख़्वाजा मीर दर्द

ख़ाक में दिल को मिलाते हो ग़ज़ब करते हो

अंधे आईने में क्या देखोगे सूरत अपनी

लाला माधव राम जौहर

ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है

दिल कोई टूटा किस तरह जोड़े

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

याद भी तेरी मिट गई दिल से

और क्या रह गया है होने को

अबरार अहमद

दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे

मैं ने जब की आह उस ने वाह की

आसी ग़ाज़ीपुरी

दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम

कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात

नहीं है शर्त कि मुझ को शरीक-ए-ख़्वाब बना

हसन नईम

ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं

क्या दवा क्या दुआ करे कोई

हादी मछलीशहरी

होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू

जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर

जलील मानिकपूरी

जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है

कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया

परवीन शाकिर

आदमी आदमी से मिलता है

दिल मगर कम किसी से मिलता है

जिगर मुरादाबादी

मीर-ए-महफ़िल हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए

शम्अ'-ए-ताबाँ सही जलता हुआ दिल तो हुए

आरज़ू लखनवी

जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा 'अनवर'

उस की ताबीर मुझे दिल के जलाने से मिली

अनवर सदीद

दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'

अब किसी पर फ़िदा नहीं होता

बेख़ुद देहलवी

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए

उस की तस्वीर हटा दी जाए

मोहम्मद अल्वी

दिल तो वो माँगते हैं और तमाशा ये है

बात मतलब की जो कहिए तो उड़ा जाते हैं

लाला माधव राम जौहर

ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है

दर्द दिल का लिबास होता है

गुलज़ार

उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था

जिस वक़्त तू ने हात लगाया था हात को

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा

अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा

हफ़ीज़ जालंधरी

बे-सुतूँ इक नवाही में है शहर-ए-दिल की

तेशा इनआ'म करें और कोई फ़रहाद रखें

जौन एलिया

दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए

बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन

सच पूछो तो 'ज़ेब' तबीअत ठीक नहीं होती

ज़ेब ग़ौरी

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे

लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं

जलील ’आली’

उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने

दिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त

हैदर अली आतिश

हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक

तेरे दिल में मिरी निगाह में है

जिगर मुरादाबादी

दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से तोड़ा तुम ने

बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं

महताब आलम

जैसे उस का कभी ये घर ही था

दिल में बरसों ख़ुशी नहीं आती

जलील मानिकपूरी

दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार

जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली

लाला मौजी राम मौजी

ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर

पहले कम-बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए

एहसान दानिश

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था

दिल भी या-रब कई दिए होते

मिर्ज़ा ग़ालिब

दिल ले के उन की बज़्म में जाया जाएगा

ये मुद्दई बग़ल में छुपाया जाएगा

दाग़ देहलवी

दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने

एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया

नूह नारवी

किसू से दिल नहीं मिलता है या रब

हुआ था किस घड़ी उन से जुदा मैं

मीर तक़ी मीर

किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी

चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो

आफ़ताब हुसैन

इश्क़ को नग़्मा-ए-उम्मीद सुना दे कर

दिल की सोई हुई क़िस्मत को जगा दे कर

अख़्तर शीरानी

दिल जहाँ ले जाए दिल के साथ जाना चाहिए

इस से बढ़ कर और कोई रहनुमा होता नहीं

जमील यूसुफ़

देख दिल को मिरे काफ़िर-ए-बे-पीर तोड़

घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर तोड़

बहादुर शाह ज़फ़र

मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है

कि इस में भरी थी मोहब्बत किसी की

अफ़सर इलाहाबादी

दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत

समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है

जमाल एहसानी

वो सूरत दिखाते हैं मिलते हैं गले कर

आँखें शाद होतीं हैं दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर

चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है

जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

शीशा टूटे ग़ुल मच जाए

दिल टूटे आवाज़ आए

हफ़ीज़ मेरठी

दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है

जो किसी और का होने दे अपना रक्खे

अहमद फ़राज़

दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से

कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से

जलील ’आली’

दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है

आन में कुछ है आन में कुछ है

ख़्वाजा मीर दर्द
बोलिए