दिल पर शेर
दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब
को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।
मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से
दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
जो हमारा न हुआ कब वो तुम्हारा होगा
दिल प्यार की नज़र के लिए बे-क़रार है
इक तीर इस तरफ़ भी ये ताज़ा शिकार है
दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था
पाना तिरा शायद तुझे खोने के लिए है
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
आँसुओं में कहीं गिरा होगा
ख़ाक में दिल को मिलाते हो ग़ज़ब करते हो
अंधे आईने में क्या देखोगे सूरत अपनी
ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
दिल कोई टूटा किस तरह जोड़े
याद भी तेरी मिट गई दिल से
और क्या रह गया है होने को
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम
कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई
सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात
नहीं है शर्त कि मुझ को शरीक-ए-ख़्वाब बना
ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है
कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा 'अनवर'
उस की ताबीर मुझे दिल के जलाने से मिली
दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
अब किसी पर फ़िदा नहीं होता
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
उस की तस्वीर हटा दी जाए
दिल तो वो माँगते हैं और तमाशा ये है
बात मतलब की जो कहिए तो उड़ा जाते हैं
उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था
जिस वक़्त तू ने हात लगाया था हात को
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा
दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन
सच पूछो तो 'ज़ेब' तबीअत ठीक नहीं होती
हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं
दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं
दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने
दिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त
हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक
तेरे दिल में मिरी निगाह में है
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने
बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं
जैसे उस का कभी ये घर ही न था
दिल में बरसों ख़ुशी नहीं आती
दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली
ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
पहले कम-बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते
दिल ले के उन की बज़्म में जाया न जाएगा
ये मुद्दई बग़ल में छुपाया न जाएगा
दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
किसू से दिल नहीं मिलता है या रब
हुआ था किस घड़ी उन से जुदा मैं
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
इश्क़ को नग़्मा-ए-उम्मीद सुना दे आ कर
दिल की सोई हुई क़िस्मत को जगा दे आ कर
दिल जहाँ ले जाए दिल के साथ जाना चाहिए
इस से बढ़ कर और कोई रहनुमा होता नहीं
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़
मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है
कि इस में भरी थी मोहब्बत किसी की
दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत
समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है
न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है
शीशा टूटे ग़ुल मच जाए
दिल टूटे आवाज़ न आए
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दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
आन में कुछ है आन में कुछ है