दिल पर चित्र/छाया शायरी

दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब

को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।

हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल

दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें

दिल कभी लाख ख़ुशामद पे भी राज़ी न हुआ

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए

दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब

दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने

दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें

जानता है कि वो न आएँगे

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं

दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे

इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही

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