महताब आलम
ग़ज़ल 8
अशआर 14
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने
बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं
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वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन
चराग़ घर के हैं सरगर्म घर जलाने में
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तुम ज़माने के हो हमारे सिवा
हम किसी के नहीं तुम्हारे हैं
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उस को आवाज़ दो मोहब्बत से
उस के सब नाम प्यारे प्यारे हैं
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ये सन कर मेरी नींदें उड़ गई हैं
कोई मेरा भी सपना देखता है
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