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मोहम्मद रफ़ी सौदा के 10 बेहतरीन शेर

18वी सदी के बड़े शायरों में शामिल, मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन।

कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का

मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में

मोहम्मद रफ़ी सौदा

फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ

इस ज़िंदगी में अब कोई क्या क्या किया करे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'

साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे

ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया

मैं ने तुम से क्या किया और तुम ने मुझ से क्या किया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर

अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फ़साने में

मोहम्मद रफ़ी सौदा

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं

अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो

क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा

व्याख्या

सौदा के इस शे’र में लफ़्ज़ “वो” और “उसे” का इशारा महबूब की तरफ़ है। शे’र के शाब्दिक मायनी तो ये हैं कि सौदा जो तेरा हाल है उतना वो यानी तेरे महबूब का नहीं है। समझ में नहीं आता कि तूने उसे किस वक़्त और किस कैफ़ियत में देखा है?

लेकिन जब दूर के मानी यानी भावार्थ पर ग़ौर करते हैं तो ख़याल की एक स्थिति उभरती है। उस स्थिति के दो पात्र हैं एक सौदा दूसरा कलाम करने वाला यानी सौदा से बात करने वाला। ये सौदा का कोई दोस्त भी हो सकता है या ख़ुद सौदा भी।

बहरहाल जो भी है वो सौदा से ये कहता है कि सौदा तूने जिस माशूक़ के ग़म में अपना ये हाल बना लिया है यानी अपनी हालत बिगाड़ ली है, मैंने उसे देखा है और वो हरगिज़ इतना ख़ूबसूरत नहीं कि उसके लिए कोई अपनी जान हलकान करे। मालूम नहीं तुमने उसे किस आन में देखा है कि वो तेरे दिल को भा गया। आन के दो मानी हैं, एक है समय और दूसरा माशूक़ाना छवि, शान-ओ-शौकत, रंग-ढंग। और शे’र में आन को दूसरे मायनी यानी माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में लिया गया है। पता नहीं सौदा तूने उसे यानी अपने महबूब को किस माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में देखा है कि उसके इश्क़ में जान हलकान कर बैठे हो। मैंने उसे देखा वो इतना भी ख़ूबसूरत नहीं कि कोई उसके इश्क़ में अपने आपको तबाह बर्बाद कर ले।

शफ़क़ सुपुरी

व्याख्या

सौदा के इस शे’र में लफ़्ज़ “वो” और “उसे” का इशारा महबूब की तरफ़ है। शे’र के शाब्दिक मायनी तो ये हैं कि सौदा जो तेरा हाल है उतना वो यानी तेरे महबूब का नहीं है। समझ में नहीं आता कि तूने उसे किस वक़्त और किस कैफ़ियत में देखा है?

लेकिन जब दूर के मानी यानी भावार्थ पर ग़ौर करते हैं तो ख़याल की एक स्थिति उभरती है। उस स्थिति के दो पात्र हैं एक सौदा दूसरा कलाम करने वाला यानी सौदा से बात करने वाला। ये सौदा का कोई दोस्त भी हो सकता है या ख़ुद सौदा भी।

बहरहाल जो भी है वो सौदा से ये कहता है कि सौदा तूने जिस माशूक़ के ग़म में अपना ये हाल बना लिया है यानी अपनी हालत बिगाड़ ली है, मैंने उसे देखा है और वो हरगिज़ इतना ख़ूबसूरत नहीं कि उसके लिए कोई अपनी जान हलकान करे। मालूम नहीं तुमने उसे किस आन में देखा है कि वो तेरे दिल को भा गया। आन के दो मानी हैं, एक है समय और दूसरा माशूक़ाना छवि, शान-ओ-शौकत, रंग-ढंग। और शे’र में आन को दूसरे मायनी यानी माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में लिया गया है। पता नहीं सौदा तूने उसे यानी अपने महबूब को किस माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में देखा है कि उसके इश्क़ में जान हलकान कर बैठे हो। मैंने उसे देखा वो इतना भी ख़ूबसूरत नहीं कि कोई उसके इश्क़ में अपने आपको तबाह बर्बाद कर ले।

शफ़क़ सुपुरी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत

ख़ुद्दाम-ए-अदब बोले अभी आँख लगी है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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