अज़रा परवीन के शेर
ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे
क़लम भी चुप है कि अब मोड़ ले कहानी क्या
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सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी
बिफर के मेरी लहर लहर अँगारा थी
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चार सम्तें आईना सी हर तरफ़
तुम को खो देने का मंज़र और मैं
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उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया
मेरा दिल मिट्टी पे रख अपने लब रोता रहा
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रंग अपने जो थे भर भी कहाँ पाए कभी हम
हम ने तो सदा रद्द-ए-अमल में ही बसर की
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