अब्दुर्राहमान वासिफ़
ग़ज़ल 10
अशआर 10
अभी से मत मिरे किरदार को मरा हुआ जान
तिरे फ़साने में ज़िक्र आएगा दोबारा मिरा
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इक इंतिज़ार में क़ाएम है इस चराग़ की लौ
इक एहतिमाम में कमरे का दर खुला हुआ है
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साथ देने की बात सारे करें
और निभाए कोई कोई मिरे दोस्त
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कोई चराग़ मिरी सम्त भी रवाना करो
बहुत दिनों से अँधेरा मिरे वजूद में है
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मुझे अब आ गए हैं नफ़रतों के बीज बोने
सो मेरा हक़ ये बनता है कि सरदारी करूँगा
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