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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रह ख़ान

ग़ज़ल 7

अशआर 8

इस तेरी मोहब्बत में मिला कुछ भी नहीं है

मैं जान गई हूँ कि सिला कुछ भी नहीं है

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उस का मिलना है अजब तरह का मुझ से मिलना

दश्त-ए-इम्कान में हो फूलों का जैसे खिलना

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उस में फूल खिला और कोई ख़्वाब उगा

कि संगलाख़ बहुत थी ज़मीं हक़ीक़त की

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नहीं नसीब में मंज़िल तो रास्ते क्यों हैं

तवील-तर ये जुदाई के सिलसिले क्यों हैं

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हम भूल गए अहद-ओ-करम तेरे सितम भी

अब तुझ से ज़माने से गिला कुछ भी नहीं है

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