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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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महमूद अहमद हाशमी

- 1914 | पाकिस्तान

महमूद अहमद हाशमी

अशआर 46

मेरे शे'रों से मिरी उम्र का अंदाज़ा कर

मुझ से मत पूछ मिरा यौम-ए-विलादत क्या है

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बारह घंटों की है इक रात जो टलती ही नहीं

हिज्र भी ऐन दिसम्बर में मिला है मुझ को

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मैं नहीं मानता काग़ज़ पे लिखा शजरा-ए-नसब

बात करने से क़बीले का पता चलता है

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बेटे मसरूफ़ रहे माल के बटवारे में

बेटियाँ बाप की मय्यत से लिपट कर रोईं

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शाइ'री इल्म-ओ-हुनर मज़हब सियासत बाद में

सब से पहले आदमी इंसान होना चाहिए

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