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नदीम गुल्लानी

1982 | पाकिस्तान

नदीम गुल्लानी

ग़ज़ल 8

नज़्म 5

 

अशआर 7

उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें

फिर मिरे ख़्वाब में आने की ज़रूरत क्या है

तू समझता है गर फ़ुज़ूल मुझे

कर के हिम्मत ज़रा सा भूल मुझे

तुम्हें हमारी मोहब्बतों के हसीन जज़्बे बुला रहे हैं

जो हम ने लिक्खे थे तुम पे हमदम वो सारे नग़्मे बुला रहे हैं

तमाम उम्र तिरे इंतिज़ार में हमदम

ख़िज़ाँ-रसीदा रहा हूँ बहार कर मुझ को

नहीं है जिस का हल अब तो कोई 'नदीम' बस इक सिवा तुम्हारे

मैं एक ऐसा ही मसअला हूँ मुझे दुआओं में याद रखना

चित्र शायरी 1

 

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