aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1824 - 1880 | दिल्ली, भारत
क्लासीकी लब-ओ-लहजे के शायर, मोमिन की मृत्यु के बाद ग़ालिब के शागिर्द हुए
तंग-दस्ती अगर न हो 'सालिक'
तंदुरुस्ती हज़ार नेमत है
बच गया तीर-ए-निगाह-ए-यार से
वाक़ई आईना है फ़ौलाद का
अब तक भी मेरे होश ठिकाने नहीं हुए
'सालिक' का हाल रात को ऐसा सुना कि बस
सय्याद और क़ैद-ए-क़फ़स से करे रहा
झूटी ख़बर किसी की उड़ाई हुई सी है
क्या सैर हो बता दे कोई बुत-कदे की राह
जाता हूँ राह का'बे की मैं पूछता हुआ
Bahar-e-Salik
1871
कुल्लियात-ए-सालिक
Kulliyat-e-Salik
1880
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