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क़ुर्बान अली सालिक बेग

1824 - 1880 | दिल्ली, भारत

क़ुर्बान अली सालिक बेग

ग़ज़ल 35

अशआर 7

तंग-दस्ती अगर हो 'सालिक'

तंदुरुस्ती हज़ार नेमत है

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बच गया तीर-ए-निगाह-ए-यार से

वाक़ई आईना है फ़ौलाद का

अब तक भी मेरे होश ठिकाने नहीं हुए

'सालिक' का हाल रात को ऐसा सुना कि बस

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सय्याद और क़ैद-ए-क़फ़स से करे रहा

झूटी ख़बर किसी की उड़ाई हुई सी है

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क्या सैर हो बता दे कोई बुत-कदे की राह

जाता हूँ राह का'बे की मैं पूछता हुआ

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