युसूफ़ जमाल
ग़ज़ल 9
नज़्म 1
अशआर 6
जब मैं कच्चा फल था तो महफ़ूज़ था मैं
अब जो पका तो मुझ पे निशाना लगता है
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वक़्त की महरूमियों ने छीन ली मेरी ज़बान
वर्ना इक मुद्दत तलक मैं ला-जवाबों में रहा
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पूछे जो ज़िंदगी की हक़ीक़त कोई 'जमाल'
तो चुटकियों में रेत उड़ा कर उसे दिखा
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बौना था वो ज़रूर मगर इस के बावजूद
किरदार के लिहाज़ से क़द का बुलंद था
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