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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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साबिर

ग़ज़ल 14

अशआर 14

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम

साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया

तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर

मिरे लिए सर्दियों का मौसम ज़रा अलग है

रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते

कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ

सारे मंज़र हसीन लगते हैं

दूरियाँ कम हों तो बेहतर है

मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की

वो मिरा हो ही नहीं सकता ये पक्का कर दिया

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 7

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है

मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में

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