आतिफ़ तौक़ीर
ग़ज़ल 13
नज़्म 11
अशआर 1
चारों तरफ़ हैं मज़हबी चारों तरफ़ हैं नफ़रतें
सब की नमाज़ एक है सब का जिहाद एक है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere