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बशीर बद्र

1935 | भोपाल, भारत

लोकप्रिय आधुनिक शायर, सरल भाषा में शेर कहने के लिए जाने जाते हैं

लोकप्रिय आधुनिक शायर, सरल भाषा में शेर कहने के लिए जाने जाते हैं

बशीर बद्र

ग़ज़ल 185

अशआर 169

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

जी भर के देखा कुछ बात की

बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

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ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना

जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता

क़िस्सा 5

 

पुस्तकें 25

चित्र शायरी 27

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अज्ञात

Bashir Badr at International Mushaira 2002, Houston

Dr. Basheer Badr reciting at International Mushaira 2002 organised by Aligarh Alumni Association Houston USA ज़फ़र इक़बाल

Bashir Badr reciting at Hind-o-Pak Dosti Aalmi Mushaira 2003, organized by Aligarh Alumni Association Houston, USA.

ज़फ़र इक़बाल

Yeh Chirag Be Nazar Hai

भारती विश्वनाथन

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

फ़हद

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए

आर.जे सायमा

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

ज़फ़र इक़बाल

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

अज्ञात

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे

फ़हद

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे

हरिहरण

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे

हरिहरण

अब किसे चाहें किसे ढूँडा करें

शकीला ख़ुरासानी

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

प्रित डिलन

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

Urdu Studio

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

जगजीत सिंह

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

अज्ञात

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

तलअत अज़ीज़

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

आर.जे सायमा

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

चंदन दास

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है

हरिहरण

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे

चंदन दास

न जी भर के देखा न कुछ बात की

नूर जहाँ

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे

राज कुमार रिज़वी

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा

तलअत अज़ीज़

मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा

चंदन दास

मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो

जगजीत सिंह

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

राजेन्द्र मेहता

मिरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

Urdu Studio

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

विविध

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

Urdu Studio

रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना

तलअत अज़ीज़

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

ज़फ़र इक़बाल

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

गुलबहार बानो

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

चंदन दास

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

बशीर बद्र

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

तलअत अज़ीज़

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

जगजीत सिंह

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं

तलअत अज़ीज़

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं

बशीर बद्र

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं

चित्रा सिंह

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

आर.जे सायमा

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

मेहरान अमरोही

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

भारती विश्वनाथन

ऑडियो 18

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

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