नुसरत सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 14
अशआर 1
किस ज़रूरत को दबाऊँ किसे पूरा कर लूँ
अपनी तनख़्वाह कई बार गिनी है मैं ने
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere