अनवर सदीद के शेर
शिकवा किया ज़माने का तो उस ने ये कहा
जिस हाल में हो ज़िंदा रहो और ख़ुश रहो
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ख़ाक हूँ लेकिन सरापा नूर है मेरा वजूद
इस ज़मीं पर चाँद सूरज का नुमाइंदा हूँ मैं
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टैग : वजूद
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खुली ज़बान तो ज़र्फ़ उन का हो गया ज़ाहिर
हज़ार भेद छुपा रक्खे थे ख़मोशी में
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टैग : ख़ामोशी
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जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा 'अनवर'
उस की ताबीर मुझे दिल के जलाने से मिली
चला मैं जानिब-ए-मंज़िल तो ये हुआ मालूम
यक़ीं गुमान में गुम है गुमाँ है पोशीदा
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टैग : मंज़िल
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कोई भी पेचीदगी हाएल नहीं अनवर-'सदीद'
ज़िंदगी है सामने मंज़र-ब-मंज़र और मैं
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ज़मीं का रिज़्क़ हूँ लेकिन नज़र फ़लक पर है
कहो फ़लक से मिरे रास्ते से हट जाए
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सैल-ए-ज़माँ में डूब गए मशहूर-ए-ज़माना लोग
वक़्त के मुंसिफ़ ने कब रक्खा क़ाएम उन का नाम
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टैग : वक़्त
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यूँ तसल्ली को तो इक याद भी काफ़ी थी मगर
दिल को तस्कीन तिरे लौट के आने से मिली
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दुख के ताक़ पे शाम ढले
किस ने दिया जलाया था
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तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर
ख़ुशबू है गर तो दिल में सिमट कर कलाम कर
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कल शाम परिंदों को उड़ते हुए यूँ देखा
बे-आब समुंदर में जैसे हो रवाँ पानी
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हम ने हर सम्त बिछा रक्खी हैं आँखें अपनी
जाने किस सम्त से आ जाए सवारी तेरी
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पँख हिला कर शाम गई है इस आँगन से
अब उतरेगी रात अनोखी यादों वाली
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उस के बग़ैर ज़िंदगी कितनी फ़ुज़ूल है
तस्वीर उस की दिल से जुदा कर के देखते
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दम-ए-विसाल तिरी आँच इस तरह आई
कि जैसे आग सुलगने लगे गुलाबों में
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टैग : आंच
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घुप-अँधेरे में भी उस का जिस्म था चाँदी का शहर
चाँद जब निकला तो वो सोना नज़र आया मुझे
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आशियानों में न जब लौटे परिंदे तो 'सदीद'
दूर तक तकती रहीं शाख़ों में आँखें सुब्ह तक
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जो फूल झड़ गए थे जो आँसू बिखर गए
ख़ाक-ए-चमन से उन का पता पूछता रहा
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चश्मे की तरह फूटा और आप ही बह निकला
रखता भला मैं कब तक आँखों में निहाँ पानी
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