Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Bekhud Dehlvi's Photo'

बेख़ुद देहलवी

1863 - 1955 | दिल्ली, भारत

दाग़ देहलवी के शिष्य

दाग़ देहलवी के शिष्य

बेख़ुद देहलवी की टॉप 20 शायरी

दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'

अब किसी पर फ़िदा नहीं होता

अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी

दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो

जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में

तुम झूट कह रहे थे मुझे ए'तिबार था

बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों

कोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए

व्याख्या

शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है उसी ने इसे दिलचस्प बनाया है। इसमें शब्द बात की यद्यपि तीन बार और पहलू की दो बार पुनरावृत्ति हुई है मगर शब्दों की तुकबंदी और अभिव्यक्ति के प्रवाह की विशेषता ने शे’र में आनंद पैदा किया है। पहलू के अनुरूप शब्द बदलने से शे’र की स्थिति का आभास होता है।

दरअसल शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है, हालांकि इसकी कोई विशेषता नहीं बल्कि सामान्य है मगर जिस अंदाज़ से शायर ने इस बिंदु को व्यक्त किया है वो सरल होने के बावजूद इस बिंदु को दुर्लभ बना देता है।

शे’र का अर्थ यह है कि बात को कुछ ऐसे प्रतीकात्मक ढंग से कहना चाहिए कि इससे सौ तरह के विभिन्न अर्थ निकलते हों। क्योंकि अर्थ की दृष्टि से एकहरी बात कहना बुद्धिमान लोगों की शैली नहीं बल्कि वे एक बात में सौ बिंदुओं का सार व्यक्त करते हैं। इस तरह से सुनने वालों को बहस करने या स्पष्टीकरण मांगने के लिए कोई कोई पहलू हाथ आजाता है। और जब बात के पहलू प्रचुर हों तो बात बदलने में आसानी होजाती है। अर्थात बिंदु से बिंदु बरामद होता है।

शफ़क़ सुपुरी

व्याख्या

शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है उसी ने इसे दिलचस्प बनाया है। इसमें शब्द बात की यद्यपि तीन बार और पहलू की दो बार पुनरावृत्ति हुई है मगर शब्दों की तुकबंदी और अभिव्यक्ति के प्रवाह की विशेषता ने शे’र में आनंद पैदा किया है। पहलू के अनुरूप शब्द बदलने से शे’र की स्थिति का आभास होता है।

दरअसल शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है, हालांकि इसकी कोई विशेषता नहीं बल्कि सामान्य है मगर जिस अंदाज़ से शायर ने इस बिंदु को व्यक्त किया है वो सरल होने के बावजूद इस बिंदु को दुर्लभ बना देता है।

शे’र का अर्थ यह है कि बात को कुछ ऐसे प्रतीकात्मक ढंग से कहना चाहिए कि इससे सौ तरह के विभिन्न अर्थ निकलते हों। क्योंकि अर्थ की दृष्टि से एकहरी बात कहना बुद्धिमान लोगों की शैली नहीं बल्कि वे एक बात में सौ बिंदुओं का सार व्यक्त करते हैं। इस तरह से सुनने वालों को बहस करने या स्पष्टीकरण मांगने के लिए कोई कोई पहलू हाथ आजाता है। और जब बात के पहलू प्रचुर हों तो बात बदलने में आसानी होजाती है। अर्थात बिंदु से बिंदु बरामद होता है।

शफ़क़ सुपुरी

सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म

कह दिया उस ने कि फिर हम क्या करें

दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें

जो हमारा हुआ कब वो तुम्हारा होगा

राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे

आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद

आइना देख कर वो ये समझे

मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें

मुझ को दिल पसंद वो बेवफ़ा पसंद

दोनों हैं ख़ुद-ग़रज़ मुझे दोनों हैं ना-पसंद

हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'

उसी का नाम जन्नत रख दिया बोतल जहाँ रख दी

वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना

जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या

देखना कभी आईना भूल कर देखो

तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा

चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं

ज़ुल्म भी मुझ पे कभी सोच-समझ कर हुआ

हूरों से होगी ये मुदारात किसी की

याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की

बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो

मुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो

मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर

जब कभी तज़्किरा-ए-जाम-ए-शराब आता है

तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम

तुम सँवारा करो बैठे हुए गेसू अपने

दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा

तुझ को आता है ख़ुदा याद हमारे होते

झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले

अल्लाह बिगाड़े बनी बात किसी की

चलने की नहीं आज कोई घात किसी की

सुनने के नहीं वस्ल में हम बात किसी की

Recitation

बोलिए