हमीदा शाहीन के शेर
कौन बदन से आगे देखे औरत को
सब की आँखें गिरवी हैं इस नगरी में
तिरे गीतों का मतलब और है कुछ
हमारा धुन सरासर मुख़्तलिफ़ है
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सितारा है कोई गुल है कि दिल है
तिरी ठोकर में पत्थर मुख़्तलिफ़ है
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फ़ज़ा यूँही तो नहीं मल्गजी हुई जाती
कोई तो ख़ाक-नशीं होश खो रहा होगा
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हिज्र की तल्ख़ी ज़हर बनी है मीठी बातें भेजो ना
ख़ुद को देखे अर्सा गुज़रा अपनी आँखें भेजो ना
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गो एक अज़िय्यत है तिरा रंग-ए-तग़ाफ़ुल
ये रंग किसी और पे सजता भी नहीं ख़ैर
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बला की तमकनत से अब सियाही बोलती है
हमारी चुप से शह पा कर तबाही बोलती है
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