- पुस्तक सूची 181620
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1877
औषधि794 आंदोलन284 नॉवेल / उपन्यास4119 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी11
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1404
- दोहा65
- महा-काव्य97
- व्याख्या174
- गीत87
- ग़ज़ल944
- हाइकु12
- हम्द35
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1505
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात640
- माहिया18
- काव्य संग्रह4538
- मर्सिया362
- मसनवी775
- मुसद्दस53
- नात497
- नज़्म1129
- अन्य65
- पहेली17
- क़सीदा176
- क़व्वाली19
- क़ित'अ55
- रुबाई273
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती12
- शेष-रचनाएं27
- सलाम32
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई26
- अनुवाद73
- वासोख़्त24
माहिर-उल क़ादरी के शेर
माहिर-उल क़ादरीये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीअक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
माहिर-उल क़ादरीइक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना
सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी
व्याख्या
इस शे’र में इश्क़ की घटना को अक़्ल और जुनूँ के पैमानों में तौलने का पहलू बहुत दिलचस्प है। इश्क़ के मामले में अक़्ल और उन्माद का द्वंद शाश्वत है। जहाँ अक़्ल इश्क़ को मानव जीवन के लिए हानि का एक कारण मानती है वहीं उन्माद इश्क़ को मानव जीवन का सार मानती है।और अगर इश्क़ में उन्माद पर अक़्ल हावी हो गया तो इश्क़ इश्क़ नहीं रहता क्योंकि इश्क़ की पहली शर्त जुनून है। और जुनून का ठिकाना दिल है। इसलिए अगर आशिक़ दिल के बजाय अक़्ल की सुने तो वो अपने उद्देश्य में कभी कामयाब नहीं होगा।
शायर कहना चाहता है कि मैं अपने महबूब के इश्क़ में इस क़दर मजनूं हो गया हूँ कि उसे भुलाने के लिए अक़्ल ने एक बार ठान ली थी मगर मेरे इश्क़ के जुनून ने मुझे सौ बार अपने महबूब की तस्वीर दिखा दी। “तस्वीर दिखा” भी ख़ूब है। क्योंकि उन्माद की स्थिति में इंसान एक ऐसी स्थिति से दो-चार होजाता है जब उसकी आँखों के सामने कुछ ऐसी चीज़ें दिखाई देती हैं जो यद्यपि वहाँ मौजूद नहीं होती हैं मगर इस तरह के जुनून में मुब्तला इंसान उन्हें हक़ीक़त समझता है। शे’र अपनी स्थिति की दृष्टि से बहुत दिलचस्प है।
शफ़क़ सुपुरी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीयही है ज़िंदगी अपनी यही है बंदगी अपनी
कि उन का नाम आया और गर्दन झुक गई अपनी
-
टैग : बंदगी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीइब्तिदा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं
इंतिहा ये है कि मरने की भी हसरत न रही
माहिर-उल क़ादरीनक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
वो निकली धूप साया जा रहा है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीपरवाने आ ही जाएँगे खिंच कर ब-जब्र-ए-इश्क़
महफ़िल में सिर्फ़ शम्अ जलाने की देर है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीसुनाते हो किसे अहवाल 'माहिर'
वहाँ तो मुस्कुराया जा रहा है
-
टैग : तग़ाफ़ुल
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीयूँ कर रहा हूँ उन की मोहब्बत के तज़्किरे
जैसे कि उन से मेरी बड़ी रस्म-ओ-राह थी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
माहिर-उल क़ादरीअगर ख़मोश रहूँ मैं तो तू ही सब कुछ है
जो कुछ कहा तो तिरा हुस्न हो गया महदूद
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets
-
बाल-साहित्य1877
-