मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम के शेर
मोहब्बत इस लिए ज़ाहिर नहीं की
कि तुम को ए'तिबार आए न आए
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नहीं है देर यहाँ अपनी जान जाने में
तुम्हारे आने का बस इंतिज़ार बाक़ी है
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कुछ नहीं मालूम होता दिल की उलझन का सबब
किस को देखा था इलाही बाल सुलझाते हुए
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बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताओ तो सही
चाहने वाला कोई हम सा दिखाओ तो सही
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मैं ने माना कि दिल नहीं नाकाम
फिर मिरे काम क्यूँ नहीं आता
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न तसल्ली न तशफ़्फ़ी न दिलासा न वफ़ा
उम्र को काटें तिरे चाहने वाले क्यूँ-कर
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हम लब-ए-गोर हो गए ज़ालिम
तू लब-ए-बाम क्यूँ नहीं आता
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टैग : बाम
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शब-ए-हिज्र जब ख़्वाब देखा ये देखा
कि तुझ को गले से लगाए हुए हैं
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उन्हें हाल-ए-दिल किस तरह लिख के भेजें
न हम उन से वाक़िफ़ न वो हम से वाक़िफ़
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न पूछा उस मसीहा से किसी ने
तिरे बीमार की भी कुछ दवा है
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हाथ टूटें जो छुआ भी हो हाथ
दुख गई उन की कलाई क्यूँ-कर
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जब मैं कहता हूँ कि नादिम हो कुछ अपने ज़ुल्म पर
सर झुका कर कहते हैं शर्म-ओ-हया से क्या कहें
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ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा
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टैग : बहार
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हम अपनी रूह को क़ासिद बना के भेजेंगे
तिरा गुज़र जो वहाँ नामा-बर नहीं न सही
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उन के आने में क्यूँ ख़लल डाला
सत्या-नास हो तिरा बदली
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अभी आए अभी कहने लगे लो जाते हैं
आग लेने को जो आए थे तो आना क्या था
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ये है आवारा-तबीअत और वो नाज़ुक-मिज़ाज
मैं दिल-ए-वारफ़्ता नज़्र-ए-यार कर सकता नहीं
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ख़ुद-ब-ख़ुद यक-ब-यक चले आए
मैं तो आँखें तलक बिछा न सका
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ये भी न पूछा तुम ने 'अंजुम' जीता है या मरता है
वाह-जी-वा आशिक़ से कोई ऐसी ग़फ़लत करता है
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ख़ुदा का घर भी है दिल में बुतों की चाह भी है
सनम-कदा भी है दिल अपना ख़ानक़ाह भी है
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जा लगेगी कश्ती-ए-दिल साहिल-ए-उम्मीद पर
दीदा-ए-तर से अगर दरिया रवाँ हो जाएगा
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तेरी मर्ज़ी गर इसी में है कि हो दीदार-ए-आम
हम ने आँखों पर क़दम सारे ज़माने के लिए
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कुछ कहानी नहीं मिरा क़िस्सा
तुम सुनो और कहा करे कोई
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मिसाल-ए-चर्ख़ रहा आसमाँ सर-गरदाँ
पर आज तक न खुला ये कि जुस्तुजू क्या है
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दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे
हुआ हूँ रंज से मैं ज़े अलिफ़ रे
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हम भी अब अपनी मोहब्बत से उठाते हैं हाथ
चाहने वाला अगर हम को दिखा और कोई
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ये बतलाओ हम को भी पहचानते हो
हमें क्या जो हो सारे आलम से वाक़िफ़
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शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
तारा टूटा कि मिरी आँख से आँसू टूटा
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थक गए हम तो फ़ुसूँ-साज़ियाँ करते करते
उस पे चलता नहीं मुतलक़ कोई गंडा तावीज़
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तिरी तेग़ की आब जाती रही है
मिरे ज़ख़्म पानी चुराए हुए हैं
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नक़्श होती जाती हैं लाखों बुतों की सूरतें
क्या ये दिल भी ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ हो जाएगा
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बता तू दिल के बचाने की कोई राह भी है
तिरी निगाह की नावक-फ़गन पनाह भी है
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सदा चमन से जो आती है रोज़ चट चट की
बलाएँ ग़ुंचे तिरी सुब्ह ओ शाम लेते हैं
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