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मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

लखनऊ, भारत

अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के बेटे और युवराज

अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के बेटे और युवराज

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम के शेर

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मोहब्बत इस लिए ज़ाहिर नहीं की

कि तुम को ए'तिबार आए आए

नहीं है देर यहाँ अपनी जान जाने में

तुम्हारे आने का बस इंतिज़ार बाक़ी है

कुछ नहीं मालूम होता दिल की उलझन का सबब

किस को देखा था इलाही बाल सुलझाते हुए

बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताओ तो सही

चाहने वाला कोई हम सा दिखाओ तो सही

मैं ने माना कि दिल नहीं नाकाम

फिर मिरे काम क्यूँ नहीं आता

तसल्ली तशफ़्फ़ी दिलासा वफ़ा

उम्र को काटें तिरे चाहने वाले क्यूँ-कर

हम लब-ए-गोर हो गए ज़ालिम

तू लब-ए-बाम क्यूँ नहीं आता

शब-ए-हिज्र जब ख़्वाब देखा ये देखा

कि तुझ को गले से लगाए हुए हैं

उन्हें हाल-ए-दिल किस तरह लिख के भेजें

हम उन से वाक़िफ़ वो हम से वाक़िफ़

पूछा उस मसीहा से किसी ने

तिरे बीमार की भी कुछ दवा है

हाथ टूटें जो छुआ भी हो हाथ

दुख गई उन की कलाई क्यूँ-कर

जब मैं कहता हूँ कि नादिम हो कुछ अपने ज़ुल्म पर

सर झुका कर कहते हैं शर्म-ओ-हया से क्या कहें

ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा

हम अपनी रूह को क़ासिद बना के भेजेंगे

तिरा गुज़र जो वहाँ नामा-बर नहीं सही

उन के आने में क्यूँ ख़लल डाला

सत्या-नास हो तिरा बदली

अभी आए अभी कहने लगे लो जाते हैं

आग लेने को जो आए थे तो आना क्या था

ये है आवारा-तबीअत और वो नाज़ुक-मिज़ाज

मैं दिल-ए-वारफ़्ता नज़्र-ए-यार कर सकता नहीं

ख़ुद-ब-ख़ुद यक-ब-यक चले आए

मैं तो आँखें तलक बिछा सका

ये भी पूछा तुम ने 'अंजुम' जीता है या मरता है

वाह-जी-वा आशिक़ से कोई ऐसी ग़फ़लत करता है

ख़ुदा का घर भी है दिल में बुतों की चाह भी है

सनम-कदा भी है दिल अपना ख़ानक़ाह भी है

जा लगेगी कश्ती-ए-दिल साहिल-ए-उम्मीद पर

दीदा-ए-तर से अगर दरिया रवाँ हो जाएगा

तेरी मर्ज़ी गर इसी में है कि हो दीदार-ए-आम

हम ने आँखों पर क़दम सारे ज़माने के लिए

कुछ कहानी नहीं मिरा क़िस्सा

तुम सुनो और कहा करे कोई

मिसाल-ए-चर्ख़ रहा आसमाँ सर-गरदाँ

पर आज तक खुला ये कि जुस्तुजू क्या है

दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे

हुआ हूँ रंज से मैं ज़े अलिफ़ रे

हम भी अब अपनी मोहब्बत से उठाते हैं हाथ

चाहने वाला अगर हम को दिखा और कोई

ये बतलाओ हम को भी पहचानते हो

हमें क्या जो हो सारे आलम से वाक़िफ़

शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में

तारा टूटा कि मिरी आँख से आँसू टूटा

थक गए हम तो फ़ुसूँ-साज़ियाँ करते करते

उस पे चलता नहीं मुतलक़ कोई गंडा तावीज़

तिरी तेग़ की आब जाती रही है

मिरे ज़ख़्म पानी चुराए हुए हैं

नक़्श होती जाती हैं लाखों बुतों की सूरतें

क्या ये दिल भी ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ हो जाएगा

बता तू दिल के बचाने की कोई राह भी है

तिरी निगाह की नावक-फ़गन पनाह भी है

सदा चमन से जो आती है रोज़ चट चट की

बलाएँ ग़ुंचे तिरी सुब्ह शाम लेते हैं

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