नज़ीर बनारसी के शेर
उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में
एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया
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ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी
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बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
ख़ुद भी तन्हा हो गए मुझ को भी तन्हा कर दिया
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टैग : बद-गुमानी
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एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई
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टैग : दीवानगी
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अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक
हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते
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ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
ज़िंदगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें
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मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे
वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी
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जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें
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दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
शहर आबाद हुए हैं इसी वीराने से
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वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ
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दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
लाओ तेशा एक दरिया दूसरा पैदा करें
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रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है
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आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
शम्अ जलने भी न पाई रौशनी होने लगी
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एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
मैं ये समझा भूलने वाले को मैं याद आ गया
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