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दीवानगी पर शेर

इश्क़ में हासिल होने

वाली दीवानगी सबसे पाक दीवानगी है आप इस दीवानगी की थोड़ी बहुत मिक़दार से ज़रूर गुज़रें होंगे, लेकिन ये सब हमारे और आप के तजुर्बात हैं और यादें हैं। इन यादों और उन तजुर्बात को लफ़्ज़ों में मचलता और फड़कता हुआ देखने के लिए हमारे इस शेरी इंतिख़ाब को पढ़िए।

कर गई दीवानगी हम को बरी हर जुर्म से

चाक-दामानी से अपनी पाक-दामानी हुई

जलील मानिकपूरी

जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है

ख़िरद रस्ता दिखा कर रह गई है

अब्दुल हमीद अदम

खुली मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों

मिरे जुनून की शोहरत तिरे बयाँ से हुई

फ़राग़ रोहवी

रोएँ अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे

होना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा

असरार-उल-हक़ मजाज़

फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से

वीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी

आप सौदाई हैं जो कहते हैं सौदाई मुझे

इमाम बख़्श नासिख़

दिल के मुआमले में मुझे दख़्ल कुछ नहीं

इस के मिज़ाज में जिधर आए उधर रहे

लाला माधव राम जौहर

कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया

तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया

हफ़ीज़ बनारसी

मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर

वो जो दीवानगी कि थी है अभी

अहमद फ़राज़

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं

अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं

असअ'द बदायुनी

एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई

पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई

नज़ीर बनारसी

हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैं

जैसे बच्चे किसी त्यौहार में गुम हो जाएँ

अहमद फ़राज़

पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की

नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

अल्लामा इक़बाल

कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना

मोहब्बत क्या भले-चंगे को दीवाना बनाती है

ख़्वाजा मीर दर्द

मैं गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में

जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी रहे

महमूद गज़नी

नई मुश्किल कोई दरपेश हर मुश्किल से आगे है

सफ़र दीवानगी का इश्क़ की मंज़िल से आगे है

ख़ुशबीर सिंह शाद

तुम्हारी ज़ात से मंसूब है दीवानगी मेरी

तुम्हीं से अब मिरी दीवानगी देखी नहीं जाती

अज़ीज़ वारसी

चलो अच्छा हुआ काम गई दीवानगी अपनी

वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते

क़तील शिफ़ाई

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