Khwaja Meer Dard's Photo'

ख़्वाजा मीर दर्द

1721 - 1785 | दिल्ली, भारत

सूफ़ी शायर, मीर तक़ी मीर के समकालीन। भारतीय संगीत के गहरे ज्ञान के लिए प्रसिध्द

सूफ़ी शायर, मीर तक़ी मीर के समकालीन। भारतीय संगीत के गहरे ज्ञान के लिए प्रसिध्द

ख़्वाजा मीर दर्द

ग़ज़ल 24

अशआर 65

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ

ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ

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ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!

हम तो इस जीने के हाथों मर चले

अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ

तिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या देखा

तर-दामनी पे शैख़ हमारी जाइयो

दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें

नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़

गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो

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तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

ख़्वाजा मीर दर्द

तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

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हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें

ख़्वाजा मीर दर्द

हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें

मुकेश

ऑडियो 12

तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके

इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है

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