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ग़ज़ल 24
शेर 63
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
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तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें
do not be deceived by it damp disposition
if I wring my cloak, angels will do ablution
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