वाहिद प्रेमी के शेर
गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ
ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिस में तू न हो
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किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
उन्हीं के नाम हैं दुनिया में जिन के काम अच्छे हैं
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आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
आई न मगर ताक़त-ए-परवाज़ अभी तक
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दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
उसी का नाम तो ज़िंदा-दिली है
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है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव
और सुब्ह-ए-बनारस है रुख़-ए-यार का परतव
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बा'द तकलीफ़ के राहत है यक़ीनी 'वाहिद'
रात का आना ही पैग़ाम-ए-सहर होता है
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वो और हैं किनारों पे पाते हैं जो सुकूँ
हम को क़रार मिलता है तूफ़ाँ की गोद में
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इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर
मुझ को आईना कहो और उन्हें तस्वीर कहो
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कोई हंगामा-ए-हयात नहीं
रात ख़ामोश है सहर ख़ामोश
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कोई गर्दिश हो कोई ग़म हो कोई मुश्किल हो
जिस को आना हो हमारे वो मुक़ाबिल आए
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एक मुद्दत से इसी उलझन में हूँ
उन को या ख़ुद को किसे सज्दा करूँ
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हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
हक़ बात सर-ए-दार कहो सोचते क्या हो
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हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
हुजूम-ए-दर्द से पाया है हौसला मैं ने
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मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ
मेरे गिरने से बहुत लोग सँभल जाते हैं
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हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन का
हम तो ठुकरा दें अगर राह में मंज़िल आए
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कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'
वो अपने नाज़ में हम अपने बाँकपन में रहे
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टैग : बांकपन
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उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ
अपने वतन में दूर हैं अहल-ए-वतन से हम
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राह-ए-तलब की लाख मसाफ़त गिराँ सही
दुनिया को मैं जहाँ भी मिला ताज़ा-दम मिला
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न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
तमाम रात जले शम-ए-अंजुमन की तरह
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शख़्सिय्यत-ए-फ़नकार मुअ'म्मा नहीं 'वाहिद'
फ़न ही में हुआ करता है फ़नकार का परतव
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का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा का तजस्सुस क्यूँ हो
जब मिरे क़ल्ब ही में मेरा ख़ुदा है यारो
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किस शान किस वक़ार से किस बाँकपन से हम
गुज़रे हैं आज़माइश-ए-दार-ओ-रसन से हम
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अँधेरों में उजाले ढूँढता हूँ
ये हुस्न-ए-ज़न है या दीवाना-पन है
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मैं औरों को क्या परखूँ आइना-ए-आलम में
मुहताज-ए-शनासाई जब अपना ही चेहरा है
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शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
उठी तो आह मगर आह बे-असर उट्ठी
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आशियाँ जलने पे बुनियाद नई पड़ती है
अक्स-ए-तख़रीब को आईना-ए-तामीर कहो
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अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
वो ज़िंदगी है आग का दरिया कहें जिसे
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क्यूँ शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-साक़ी है लबों पर
पीना है तो ख़ुद बढ़ के पियो बादा-गुसारो
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