फ़रहत अब्बास शाह के शेर
उस के बारे में बहुत सोचता हूँ
मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा
उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की
वो आ के मेरे दर-ओ-बाम ले गया मुझ से
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साँस लेता हूँ तो रोता है कोई सीने में
दिल धड़कता है तो मातम की सदा आती है
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मिरे अंग अंग में बस गई
ये जो शाइ'री है ये कौन है
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अना की जंग में हम जीत तो गए लेकिन
फिर उस के बाद बहुत देर तक निढाल रहे
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मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ
तो कुछ सहाब मिरे साथ साथ चलते हैं
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कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से
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