अब तो सोचा है नई राह निकाली जाए
अपने दुश्मन की तरफ़ फूलों की डाली जाए
बुज़दिलों के लिए दुनिया में नहीं गुंजाइश
तेरी जुरअत का कोई वार न ख़ाली जाए
क्यों न गुफ़्तार से तलवार का मसरफ़ ले लें
क्यों हर इक बात पे शमशीर निकाली जाए
हरम-ओ-दैर के शो'लों में जलें हम कब तक
ज़ेहन-ए-जम्हूर में ये बात भी डाली जाए
हरम-ओ-दैर के माबैन हो उल्फ़त पैदा
क्यों न ऐसी कोई तरकीब निकाली जाए
मसअला प्यार से हल हो तो बहुत अच्छा है
ये ज़रूरी नहीं शमशीर उठा ली जाए
हाथ में तेग़ लबों पर है लहू की सुर्ख़ी
दिल के एल्बम में ये तस्वीर सजा ली जाए
लोग हातिम को भुला दें जो तुम्हारे दर से
दिल-शिकस्ता न कभी कोई सवाली जाए
अपनी हर भूल को पाबंद-ए-नदामत कर के
आक़िबत नार-ए-जहन्नम से बचा ली जाए
माँ के क़दमों में ही जन्नत है यक़ीनन 'अहसन'
बात माँ की न किसी हाल में टाली जाए
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