कहियो क़ासिद जो वो पूछे हमें क्या करते हैं
कहियो क़ासिद जो वो पूछे हमें क्या करते हैं
जान-ओ-ईमान-ओ-मोहब्बत को दुआ करते हैं
इश्क़ आतिश भी जो देवे तो न दम मारें हम
शम्-ए-तस्वीर हैं ख़ामोश जला करते हैं
जाए ही न मरज़-ए-दिल तो नहीं इस का इलाज
अपने मक़्दूर तलक हम तो दवा करते हैं
उस के कूचे में न कर शोर-ए-क़यामत का ज़िक्र
शैख़ याँ ऐसे तो हंगामे हुआ करते हैं
बेबसी से तो तिरी बज़्म में हम बहरे बने
नेक-ओ-बद कोई कहे बैठे सुना करते हैं
रुख़्सत-ए-जुम्बिश-ए-लब इश्क़ की हैरत से नहीं
मुद्दतें गुज़रीं कि हम चुप ही रहा करते हैं
तू परी शीशे से नाज़ुक है न कर दा'वा-ए-मेहर
दिल हैं पत्थर के उन्हों के जो वफ़ा करते हैं
तुझ से लग जा के ये यूँ जाते रहें मुझ से हैफ़
दीदा-ओ-दिल ने न जाना कि दग़ा करते हैं
फ़ुर्सत-ए-ख़्वाब नहीं ज़िक्र-ए-बुताँ में हम को
रात दिन राम कहानी सी कहा करते हैं
मज्लिस-ए-हाल में मौज़ूँ हरकत शैख़ की देख
हीज़-ए-शरई भी दम-ए-रक़्स मज़ा करते हैं
ये ज़माना नहीं ऐसा कि कोई ज़ीस्त करे
चाहते हैं जो बुरा अपना भला करते हैं
महज़ नाकारा भी मत जान हमें तू कि कहीं
ऐसे नाकाम भी बेकार फिरा करते हैं
तुझ बिन इस जान-ए-मुसीबत-ज़दा ग़म-दीदा पे हम
कुछ नहीं करते तो अफ़्सोस किया करते हैं
क्या कहें 'मीर' जी हम तुम से मआश अपनी ग़रज़
ग़म को खाया करें हैं लोहू पिया करते हैं
- पुस्तक : मीरियात - दीवान नंo- 1, ग़ज़ल नंo- 0292
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