आदिल असीर देहलवी के शेर
बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
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काग़ज़ तमाम किल्क तमाम और हम तमाम
पर दास्तान-ए-शौक़ अभी ना-तमाम है
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