संपूर्ण
परिचय
ई-पुस्तक1442
लेख40
उद्धरण30
तंज़-ओ-मज़ाह1
शेर20
ग़ज़ल31
नज़्म6
ऑडियो 11
वीडियो2
चित्र शायरी 6
आल-ए-अहमद सुरूर
लेख 40
उद्धरण 30
शायरी में वाक़िया जब तक तजरबा न बने उसकी अहमियत नहीं है। ख़्याल जब तक तख़य्युल के सहारे रंगा-रंग और पहलूदार न हो, बेकार है। और एहसास जब तक आम और सत्ही एहसास से बुलंद हो कर दिल की धड़कन, लहू की तरंग, रूह की पुकार न बन जाये उस वक़्त तक इसमें वो थरथराहट, गूंज, लपक, कैफ़ियत, तासीर-ओ-दिल-गुदाज़ी और दिलनवाज़ी नहीं आती, जो फ़न की पहचान है।
तंज़-ओ-मज़ाह 1
अशआर 20
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
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आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
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बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं
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