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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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आले रज़ा रज़ा

1896 - 1978 | कराची, पाकिस्तान

प्रख्यात शायर जिन्हें लखनवी शायरी के शायरना महावरों पर दक्षता थी

प्रख्यात शायर जिन्हें लखनवी शायरी के शायरना महावरों पर दक्षता थी

आले रज़ा रज़ा

ग़ज़ल 28

अशआर 9

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

घुट घुट के मर रहे हैं अजब बेबसी से हम

क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है

घर फूँक तमाशा देख चुके अब जंगल जंगल रोना है

दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें

एक बीमारी की सौ बीमारियाँ

समझ तो ये कि समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ

मिज़ाज ये कि ज़माना मिज़ाज-दाँ होता

हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के

बे-वफ़ाओं से इंतिक़ाम लिया

लेख 1

 

पुस्तकें 8

 

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