आमिर सुहैल के शेर
ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़
ये ज़िंदगी है कि अख़बार का तराशा है
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मैं क्या करूँगा रह के इस जहान में
जहाँ पे एक ख़्वाब की नुमू न हो
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