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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आरसी

ग़ज़ल 2

 

नज़्म 2

 

दोहा 9

कब तक ढोती याद की तस्वीरों का भार

इतनी कीलें ठोक दीं टूट गई दीवार

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जैसा उस का क्रोध है वैसा उस का प्यार

अलग अलग होती नहीं दो-धारी तलवार

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ध्यान रखे चिंता करे ये है उस की रीत

नारी के संवाद को समझ लेना प्रीत

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नदिया सूखी द्वेष की प्रीत करे बदलाओ

आर मिल गया पार से ख़त्म हुआ अलगाव

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नन्हे बालक जैसा मन में रहता है संताप

जागे तो शैतान बहुत है सोए तो निष्पाप

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