आरसी पेशे से कम्प्यूटर इंजिनीयर हैं और लम्बे आरसे तक सॉफ्टवेयर सर्विस में रहने के बाद शायरी की तरफ मुड़ी हैं | उनकी मादरी ज़बान मराठी है लेकिन वे उर्दू और हिंदी में दोहे, सरसी, ग़ज़लें नज़्में, कविताएं लिखती हैं | बेहद संजीदा शायरी करती हैं , अज़्म और हौसले की बात करती है |
उनकी शायरी, दोहे और नज़्म एक तरह का ‘पोर्टल’ खोलते हैं । आरसी की रचनाओं का यह ‘पोर्टल’ जहाँ एक तरफ़ आस-पास की तमाम मौजूदगियों की निशानदेही करता है, वहीं दूसरी तरफ़ जाने किस-किस तरह की ना-मौजूदगियों की शिनाख्त़ भी| इन्हीं मौजूद और ना-मौजूद के बीच आरसी की शायरी कभी इश्क़ को इबादत के मुकाम पर ले जाती है तो कभी विज्ञान के सहारे सूफियाना फ़लसफ़ों के अनचिन्हे वरक पलटती है।
उनके कलाम की वुसअत सिंगार, वीररस से लेकर विज्ञान, गणित, आधुनिकता की मायानगरी से होते हुए तसव्वुफ़, साधना और मुक्ति के अंतिम सत्य का फासला तय कर जाती है … ”सरे-आईना मेरा अक्स है, पसे-आईना कोई और” की उलझन से परे।