आबाद लखनवी के शेर
फ़क़त उमीद है बख़्शिश की तेरी रहमत से
वगर्ना अफ़्व के क़ाबिल मिरे गुनाह नहीं
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उड़ाऊँ क्यूँ न गरेबाँ की धज्जियाँ हैहात
वही ये हाथ हैं जिन में किसी का दामन था
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