अब्बास अलवी के शेर
जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें
तो जिस ज़मीं पे क़दम रक्खें आसमाँ कर लें
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ये तुम से किस ने कहा है कि दास्ताँ न कहो
मगर ख़ुदा के लिए इतना सच यहाँ न कहो
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जानता हूँ कौन क्या है आप क्यूँ दें मशवरा
मैं लुटेरों से भी वाक़िफ़ और रहबर-आश्ना
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